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और दान, ध्यान व सेवा में रत रहकर गृहस्थ योगी की भांति समय बिताया।
तीस वर्ष की भरपूर जवानी मे, सबकी सहमति से, वैराग्य-मार्ग अपनाते हुए गृह-त्याग किया।
॥ महावीर की कठोर साधना ।। बारह वर्ष, पांच मास और पन्द्रह दिन तक कठोरतम साधना की भट्टी में डाल दिया अपने पापको वर्द्धमान महावीर ने । तप की इस दीर्घ-कालीन अवधि में कोई ३४६ दिन इस साधक ने आहार किया होगा। दो दिन की अवधि से लेकर छः मास की अवधि पर्यन्त इन्होने अनेक निराहार व्रत रखे।
वह पूर्ण असग्रही थे । वह क्षमाशूर थे। परन्तु अनेकों उपसर्ग आने पर भी वह अडोल रहे।
वह प्रहर-प्रहर किसी लक्ष्य पर एकाग्र हो ध्यान करते। लोग उनकी निंदा करते, परन्तु वह चुप रहते। कई व्यक्ति रोष में आकर उन्हे पीड़ित करते, महावीर समभाव से इन सब उपसर्गो को सहते ।
महावीर ने अनासक्ति के लिए शरीर की परिचर्या को भी त्याग रखा था । संग-त्याग की दृष्टि से पात्र में भोजन नहीं करते और न वस्त्र ही पहनते।
उनका दृष्टि सयम लाजवाब था। वह चलते-चलते इधर-उधर नहीं देखते, पीछे नही देखते, बुलाने पर भी नही बोलते, केवल मागं को देखते हुए चलते थे।
वह प्रकृति विजेता थे। सख्त सर्दी हो या गर्मी वह नंगे शरीर घूमते । वह अप्रतिवद्ध बिहारी थे, परिव्राजक थे। बीच-बीच मे वह