SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ० ऋषभदेव ने प्रयाग में जहाँ तपस्या की थी वह स्थान अक्षयवट और उत्कृष्ट तपस्या के कारण प्रकृष्ट+याग अथवा प्रयाग नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ। योगीश्वर ऋषभ ही शिव है जिन्हे सभी धर्म वालो ने अपना आदि पुरुष स्वीकार किया है। ऐसे 'भगवान् ऋषभदेव' (आदिनाथ) को प्रत्येक भू-मानव शतशत प्रणाम करे और उनके पद-चिह्नो पर चलकर स्व-पर कल्याणारूढ होकर सच्ची श्रद्धाजलि अर्पित करे तथा उनके समान कर्म-निर्जरा करते हुए मोक्ष पद प्राप्त करे । "मानवता के जनक ऋषभ भगवान् की जय हो।"
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy