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________________ १४६ (क) हस्तिशाला (25'x30')-इस में छः स्तम्भ हैं । हाथिया पर आरूढ विमलशाह और उनके वशजो की मूर्तियाँ है जिन्हे उनके वशज पृथ्वी पाल ने 1150 ई० के लगभग बनवाया था। (ख) आगे मुख्यमन्डप (25' फुट x 25' फुट) है। (ग) आगे देवकुलो की पक्ति व मामिति और प्रदक्षिणा मण्डप है, जिसका ऊपर वर्णन आ चुका है। तत्पश्चात मुख्य मन्दिर का रग मण्डप या सभा-मन्डप मिलता है, जिसका गोल शिखर 24 स्तम्मो पर आधारित है। छत की पद्मशिला के मध्य में बने हुए लोलक की कारीगरी अद्वितीय और कला के इतिहास में विख्यात है। उत्तरोत्तर छोटे होते हुए चद्रमन्डलो युक्त कंचुलक कारीगरी सहित 16 विद्याधरियो की आकृतिया अत्यन्त सुन्दर है। इस रग मण्डप की समस्त रचना व उत्कीर्णन को देखते हुए दर्शक को ऐसा प्रतीत होने लगता है, जैसे मानो वह किसी दिव्य लोक में प्रा पहुँचा हो । रगशाला से आगे चलकर नवचौकी मिलती है, जिसका यह नाम उसकी छत के विभागो के कारण पडा है। इससे पागे गूढ मण्डप है। वहा से मुख्य प्रतिमा का दर्शन-वन्दन किया जाता है। इसके सम्मुख वह मूल गर्भ-गह है, जिसमें भगवान ऋषभनाथ की धातु प्रतिमा विराजमान है। (2) लूण-वसही: लूण-वसही के नाम से विख्यात नेमिनाथ भगवान का यह मन्दिर विमल-वसही के सम्मुख ही स्थित है। इसका निर्माण सन 1232 ई० मे बधेल वशी राजा वीर धवल के दो मत्री-भ्रात 'तेजपाल और वस्तु पाल' ने किया था। तेजपाल मत्री के पुत्र 'लूण सिंह' की स्मृति में बनवाये जाने के कारण इस मन्दिर का नाम लूरण-वसही प्रसिद्ध हुआ। इस मन्दिर का विन्यास व रचना प्रायः आदिनाथ मन्दिर के सदृश
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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