________________
दान्त, नियम-तत्पर, ब्रह्मचारी और सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति अहिंसक हो । जो बाह्य प्रदर्शन मात्र के लिए श्रमणत्व स्वीकार न करता हो और जो समचर्या वाला हो।"
मेगास्थनीज कहता है कि श्रमण ब्राह्मणों और बौद्धों से भिन्न हैं। श्रमण शब्द के तीन अर्थ हैं
श्रम-परिश्रम करके जो मुक्ति प्राप्त करे । सम-सभी प्राणियों के प्रति समता रखे । शम-इन्द्रिय जयी हो।
श्रमण साधुओ का सर्वत्र वर्णन मिलता है। वैदिक और श्रमण सस्कृति के मेल से ही भारतीय संस्कृति उज्ज्वल हुई है। वस्तुत: दोनो एक-दूसरे की पूरक हैं। दोनों एक सिक्के के दो पहलू है। यदि वैदिक संस्कृति को मूल रूप मे शरीर की सज्ञा दें तो श्रमण संस्कृति को उसकी आत्मा कह सकते है । ऐसी समन्वयात्मक दृष्टि ही भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित कर सकती
-
-
-
-