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नामक स्टेशन के समीप स्थित है। तीन हजार फुट ऊंची पहाड़िया में सात गुफाएं हैं, जो आकार में छोटी होने पर भी कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । पहली और दूसरी गुफा दुतल्ली है । तीसरी गुफा के मण्डप की छत पर 'कमल' की आकृति बड़ी सुन्दर है। उसकी पंखुड़ियाँ चार कतारो में दिखाई गई हैं और उन पखुड़ियी पर देवियाँ वाद्य सहित नृत्य कर रही हैं। देव-देवियों के अनेक युगल वाहनों पर प्रारूढ़ हैं । स्पष्टतः यह दृश्य तीयंकर के जन्मकल्याणक के उत्सव का है। गर्भगह में शान्तिनाथ व उनके दोनों ओर पावनाथ की मूर्तियां हैं । चौथी गुफा का बरामदा 30'x8' है। बरामदे के स्तम्भ,पर एक लेख भी है जो पढ़ा नहीं जा सकता, किंतु लिपि पर से 11वी शती का अनुमान किया जाता है। शेष गुफाएं टूटी फूटी अवस्था में हैं।
15. ग्वालियर की जैन गुफाए:यद्यपि गुफा युग बहुत पूर्व समाप्त हो चुका था तो भी जैन लोग 15 वी शती तक गुफाओ का निर्माण कराते रहे । इसका उदाहरण है 'तोमर राजवंश' कालीन ग्वालियर की जैन गुफाएं ।
जैनियो ने 15वी शती तक समस्त पहाड़ी को गुफामय कर दिया। 'इन गुफाओ की विशेषता है इनकी संख्या, विस्तार व मूर्तियों की विशालता' । गुफाएं बहुत बडी- बड़ी हैं। उनमें तीथंकरों की 60 फुट ऊ ची प्रतिमाएं देखने को मिलती है
उर्वाही द्वार पर प्रथम गुफा समूह में लगभग 25 विशाल तीर्थकर मतियाँ है, जिनमे एक 57 फुट ऊ ची है। आदिनाथ व नेमिनाथ की 30 फुट ऊंची मूर्तियाँ है । अन्य छोटी छोटी प्रतिमाए भी है।
प्राधा मील ऊपर दूसरा गुफा समूह है जहां 20-30 फुट तक की