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| राह विषे मत सोवो रे अनारी । जागो०॥ टेक ॥
लख विषयन सुख मन बौरायो, मोह विषय में हुआ चकचूर। सम्यक दर्शन ज्ञान गठरिया, लुट जावेगी देखो यहां पे जरूर ॥ १ पाँचों इन्द्री चोर अनादी, संग रहँ होना एक छिन दूर। क्रोध लोभ माया मद चारों, डारेंगे आँखों में कर्मों की धूर ॥२॥ यह संसार असार चलाचल, दुक्ख कुचाचल से भरपूर । न्यामत तज आलस्य भज पारश, काटो यह आगे कर्म करूर ॥३॥
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तर्ज ॥ इलाजे दर्द दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता ।। देव अरिहंत गुर निर्ग्रन्थ आगम स्यादाद अपना । यही सत और असत सब आजमाए जिसका जी चाहे ॥ टेका। बना जिन धर्म का मंडल हितैषी देश हरियाना। बजे है धर्म नक्कारा बजाए जिसका जी चाहे ॥१॥ कुमारग से हटा शिवमग दिखाना काम है इसका। फरक इसमें नहीं ईमान लायें जिसका जी चाहे २॥ | धरम देश उन्नति करना यही है काम मदों का।
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