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ना काह से द्वेष राग चित में नहीं लाते हैं। तन धन की ममता छोड़ ध्यान आपे में लगाते हैं ॥१॥ शत्रु मित्र एक सार नहीं कुछ भेद रखाते हैं। आते हैं जो जो शरण सभी को पार लँघात हैं ॥२॥ तिलतुश परिग्रह छोड़ दिगम्बर वेष बनाते हैं। इस बिन मुक्ति नहीं होय जीव को यूं दर्शाते हैं ॥३॥ ग्रीषम वर्षा शीत वेदना सारी उठाते हैं। दो वीस परीपह सहें कर्म का नाश कराते हैं ॥ ४ ॥ तीन काल सामायक कर निज आतम ध्याते हैं।
और सांझ सवेरे पर जीवन हित शास्त्र सुनाते हैं ।। ५ ।। मिथ्या मत को नाश शुद्ध सम्यक्त दिलाते हैं।
और मोह नींद में सोय पड़ों को आन जगाते हैं ॥६॥ लख मोह अभि से तप्त जीव करुणा मन लाते हैं। कर जिनवाणी उपदेश धर्म अमृत बरसाते हैं ॥७॥ जीव दया का रूप तत्व का स्वरूप दिखाते हैं। जिसको जो संशय होय कहो सव भ्रम मिटाते हैं ॥ ८॥ अंजुल जल ज्यों आयु सदा दिन बीते जाते हैं। न्यामत सुकृत करना सो करलो गुरु समझाते हैं ।। ९॥
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तर्ज ॥ किस विधि कीने करम चकचूर । उत्तम छिमापे जिया चम्मा मोहे
आवे॥ किस०॥ जागो मुसाफिर प्यारे जाना है दूर ॥
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