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परोपकारी में हाथ अपने दिखाये जिसका जी चाहे ॥३॥ खड़ा झंडा निशांकित का पनाह लेते हैं जो आकर। नहीं डरते किसी से हैं डराए जिसका जी चाहे ॥ ४ ॥ लगा है पोदा उलफत का झुकी है शाख हमदर्दी। अजब एकताई फल फूला है खाये जिसका जी चाहे ॥५॥ सभासद इसका हो सकता है हर जिन धर्म श्रद्धानी । खुला दरबार है यहां पे तो आए जिसको जी चाहे ॥ ६ ॥ इरादा है यह मंडल का करें उद्धार भारत का। तमन्ना सबकी बरलाए सुनाए जिसका जी चाहे ॥७॥ सरे बाजार पंडित जल धर्म उपदेश देते हैं। दिलों में जो शकूक हो- मिटाऐ जिसका जी चाहे ॥ ८॥ न पर खंडन से मतलब है न मंडन मुद्दआ अपना। सतासत निर्णय करते हैं कराए जिसका जी चाहे ॥ ९ ॥ धरम प्रभावना मंडल तनोमन धनसे करता है। सरेमू भी फरक होवे दिखाये जिसका जी चाहे ॥१०॥ कान देकर सुनो न्यामत पुकार हम सबसे कहते हैं। पड़ा बेड़ा मँवर में है बचाए जिसका जी चाहे ॥ ११ ॥
- १२ तर्ज ॥ सोरठ अधिक खरूप रूपका दिया न जागा.मोल ॥
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कर सकल विभाव अभाव मिटादो बिकलंपता मनकी ॥ टेका आप लखे आपमें आपा गत ब्योहारन की।