________________
मो। पा० ॥ ४॥ श्रेणी उपशम जिन ना लहै गे, खपक श्रेणी,धर खंत भ० ख० । चारित्र मोह खपावतां रे, चढिया ध्यान अत्यन्त भ० ० ।। पा०॥ ५ ॥ नवसे आदि संजल चिहुं रे, अन्त समें इक लोभ भ० अं० दसमे सूक्ष्म मात्र ते रे, सागार उपयोग शोभ भ० सा० ॥ मा० ।। ६ ॥ एकादशमो उलंघनै रे. बारमें मोह खपाय भ० बा० । तिकर्म एक समै तोड़ता रे, तेरमें केवल पाय ।। पा०.७॥ तीर्थ थाय योग रूंधनै रे, चउदमा थो शिवपाय भ० च० । उगणोसै पूनम
भाद्रवे रे, अनन्त रट्या हरषाय भ० अ० ॥पा०॥८॥ __ ओ स्तवन नोचे लिखे मुजब चालमें भी
'गायो जाते है। ..... अनन्त नाम जिन चवदमां. जिनराय रे। द्रव्य चोथे गुगा स्थान खाम सुखदाया रे || भावे जिन हुवै तेरसें, जिनगया रे। इतले द्रव्य जिन जागा, स्वाम सुखदाया रे ॥ १॥ . . . . .
. श्री धर्म जिन स्तवन । .
.. (भिक्षु पट भारीमाल भलर्क पदेशी ) . धर्म जिन धर्म तगणा धोरी. घटक मोहपाश नाख्या तोड़ी । चरमा धर्म आत्म स्यूँ जोड़ी अहो प्रभु धर्म देव