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॥४॥ गुण गिरवी गंभौर धौर तूं, तू मेटण जम वास। मैं तुम वयण आगम शिर धावा, तू मुज पूरण आश ॥ सा ॥ ५॥ तूं हो कृपाल दयाल'तू साहेब, शिवदायक तू जगनाथ। निश्चय ध्यान कर तुन अोलख, ते मिले तुज संघात ॥ सा० ॥ ६ ॥ अन्तरजामौ आप उजागर, मैं तुम शरगो लौध। सम्बत् उगणीसै भाद्रवौ पूनम बछित कार्य सिद्ध ।। सा० ।। ७॥ .
श्री अनंत जिन स्तवन।
(पायो युगराज पद मुनि एदेशी) । अनन्त नाम जिन चउदमारे, द्रव्य चोथे गुणठांणं भलांजी काई द्रव्य० । भावे जिन हुवै तेरमे रे, इतले द्रव्य जिन जाण ॥ भलाजौ, काई दूतलै द्रव्य जिन जाण, पायो पद जिनराज नू रे। शुद्ध धान निर्मल धधाय, भला० पायो पद ॥ १ ।। जिन चक्री सुर जुगलिया रे, वासुदेव बलदेव भला० बा० । ए पंचम गुण पावै नहौं रे, ए रोत अनादि खमेव भला. ए.पा. ॥२॥ संयम लौधो तिण समै रे, आया सातमें गुण ठाण भलां० 'आ० । अन्तर मुहर्त तिहां रही रे, छठे बहु स्थिति जाण भलां० छ० ॥ पा० ॥३॥ आठमां थो दोय श्रेणी छे रे, उपशम खपक पिछाण भला० उ० उपशम जाय इग्यारमें रे। मोह दवाव तो जाण भला.