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विषय-सूची अध्याय : १ भारतीय दर्शन में सामाजिक चेतना १-१६
भारतीय दर्शन में सामाजिक चेतना का विकास (१); वेदों एवं उपनिषदों में सामाजिक चेतना (२); गीता में सामाजिक चेतना (४); जैन एवं बौद्ध धर्म में सामाजिक चेतना (६); रागात्मकता और समाज (८); सामाजिकता का आधार राग या विवेक ? (१०); सामाजिक जीवन में बाधक तत्त्व अहंकार और कषाय (११); संन्यास और समाज (१२); पुरुषार्थ चतुष्टय एवं समाज (१३)। अध्याय : २ स्वहित बनाम लोकहित १७-३१
जैनाचार-दर्शन में स्वार्थ और परार्थ (१८); जन-साधना में लोकहित (१८); तीर्थकर (१९); गणधर (२०); सामान्य केवली (२०); आत्महित स्वार्थ नहीं है (२१); द्रव्य-लोकहित (२२); भाव-लोकहित (२२); पारमार्थिक-लोकहित (२२); बौद्ध दर्शन की लोकहितकारिणी दृष्टि (२२); स्वहित और लोकहित के सम्बन्ध में गीता का मन्तव्य (२९); अध्याय : ३ वर्णाश्रम-व्यवस्था
३२-४२ वर्ण-व्यवस्था (३२); जैनधर्म और वर्ण-व्यवस्था (३२); बौद्ध आचार दर्शन में वर्ण-व्यवस्था (३४); ब्रह्मज कहना झूठ है (३५); वर्ण-परिवर्तन सम्भव है (३६); सभी जाति समान है (३६); आचरण ही श्रेष्ठ है (३६); गीता तथा वर्ण-व्यवस्था (३६); आश्रम-धर्म (४०); जैन-परम्परा और आश्रम-सिद्धान्त (४१); बौद्ध-परम्परा और आश्रम-सिद्धान्त (४२); अध्याय : ४ स्वधर्म को अवधारणा ४३.४९
गोता में स्वधर्म (४३); जैनधर्म में स्वधर्म (४४); तुलना (४५); स्वधर्म का आध्यात्मिक अर्थ (४६); गीता का दृष्टिकोण (४८); बेडले का स्वस्थान और उसके कर्तव्य का सिद्धान्त तथा स्वधर्म (४९); अध्याय : ५ सामाजिक नैतिकता के केन्द्रीय तत्त्व ५०-९७
अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह अहिंसा (५१), जैनधर्म में अहिंसा का स्थान (५१); बौद्धधर्म में अहिंसा .का स्थान (५२); हिन्दू धर्म में अहिंसा का स्थान (५३); अहिंसा का