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________________ सम्यग्ज्ञान ७९ और शैली में दोनों ही अनात्म भावना या भेद - विज्ञान की अवधारणा को प्रस्तुत करते हैं, जो तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययनकर्ता के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इस सन्दर्भ बुद्ध वाणी है । "भिक्षुओं, चक्षु अनित्य है, जो अनित्य है वह दुःख है, जो दुःख है वह अनात्म है, जो अनात्म है वह न मेरा है, न मै हूँ, न मेरा आत्मा है, इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए ।" “भिक्षुओं, घ्राण अनित्य है, जिह्वा अनित्य है, काया अनित्य है, मन अनित्य है, जो अनित्य है वह दुःख है, जो दुःख है वह अनात्म है, जो अनात्म है वह न मेरा है, न मैं हूँ, न मेरा आत्मा है, इमे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए ।" 'भिक्षुओं, रूप अनित्य है, जो अनित्य है वह दुःख है, वह अनात्म है, जो अनात्म है, वहन मेरा है, न मैं हूँ, न मेरी आत्मा है, इमे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए ।” 'भिक्षुओ, शब्द अनित्य है । गध। रम । स्पर्श । धर्म अनित्य है, जो अनित्य है, वह दुःख है, वह अनात्म है, जो अनात्म है, वह न मेरा है, न मै हूँ, न मेरी आत्मा है, इसे यथार्थतः प्रज्ञापूर्वक जान लेना चाहिए ।' 'भिक्षुओं । इमे जान पण्डित आर्यश्रावक चक्षु मे वैराग्य करता है, श्रोत्र मे, घ्राण मे, जिह्वा मे, काया में, मन मे वैराग्य करता है । वैराग्य करने मे, रागरहित होने से विमुक्त हो जाता है । विमुक्त होने में विमुक्त हो गया ऐमा ज्ञान होता है । जाति क्षीण हुई, ब्रह्मचर्य पूरा हो गया, जो करना था सो कर लिया, पुनः जन्म नही होगा - जान लेता है ।' 'भिक्षुओ | अतीत और अनागत रूप अनात्म है वर्तमान का क्या कहना गन्ध..........। रम''''। स्पर्श । धर्म। ? शब्द" | भिक्षुओं । इसे जानकर पण्डित आर्यश्रावक अतीत रूप मे भी अनपेक्ष होता है, अनागत रूप का अभिनन्दन नही करता और वर्तमान रूप के निर्वेद, विराग और विरोध के लिए यत्नशील होता है ।' शब्द । गन्ध ं''। रम"'"। स्पर्श | धर्म। इस प्रकार हम देखते है कि दोनों विचारणाएँ भेदाभ्यास या अनात्म-भावना के चिन्तन में एक-दूसरे के अत्यन्त निकट है । बौद्ध-विचारणा में समस्त जागतिक उपादानों को 'अनात्म' सिद्ध करने का आधार है उनकी अनित्यता एवं तज्जनित दुःखमयता | जैन- विचारणा ने अपने भेदाभ्यास की साधना मे जागतिक उपादानों में अन्यत्व भावना का आधार उनकी मांयोगिक उपलब्धि को माना है, क्योंकि यदि सभी १. संयुत्तनिकाय, ३४|१|१|१; ३४ |१| १ |४; ३४ । १ । १ । १२
SR No.010202
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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