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बन, बौद्ध और गोता का साधना मार्ग स्थित हुए बिना आत्मा का साक्षात्कार नहीं होता। यद्यपि इस स्तर पर 'स्व' का ग्रहण नहीं होता, लेकिन पर ( अन्य ) का पर के रूप में बोध और पर का निराकरण अवश्य होता है। इस अवस्था में जो प्रक्रिया होती है वह जैन-विचारणा में भेद-विज्ञान कही जाती है । आगम-जान भी प्रत्यक्ष रूप से तत्त्व या आत्मा का बोध नहीं करता है, फिर भी जमे चित्र अथवा नक्शा मूल वस्तु का निर्देश करने में महायक होता है, वैसे ही आगम भी तन्वोपलब्धि या आत्मज्ञान का निर्देश करते है। वास्तविक तन्व-बोध तो अपरोक्षानुभूति मे ही मम्भव है । जिम प्रकार नक्शा या चित्र मूलवस्तु मे भिन्न होते हुए भी उमका संकेत करता है, वैसे ही बौद्धिक ज्ञान या आगम भी मात्र संकेत करते है-लक्ष्यते न तु उच्यते ।
माध्यात्मिक ज्ञान-ज्ञान का तोमग स्तर आध्यात्मिक ज्ञान है। इसी स्तर पर आत्म-बोध, म्व का माक्षात्कार अथवा परमार्थ की उपलब्धि होती है। यह निर्विचार या विचारशून्यता की अवस्था है । इम स्तर पर ज्ञाता, ज्ञान और जेय का भेद मिट जाता है । ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय मभी 'आत्मा' होता है । ज्ञान की यह निविचार, निर्विकल्प, निराश्रित अवस्था ही ज्ञानात्मक माधना को पूर्णता है। जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शन का माध्य ज्ञान की इमी पूर्णता को प्राप्त करना है। जैन दष्टि में यही केवलज्ञान है । आचार्य कुन्दकुन्द कहते है कि जो मर्वनयों ( विचार-विकल्पो ) में शून्य है, वही आत्मा ( ममयमार ) है और वहां केवलज्ञान और केवलदर्शन कहा जाता है।' आचार्य अमृतचन्द्र भी लिखते है-विचार की विधाओं में रहित, निर्विकल्प म्ब-ग्वभाव मे स्थित ऐमा जो आत्मा का मार तत्त्व ( ममयमार ) है, जो अप्रमत्त पुरुषों के दाग अनुभूत है, वही विज्ञान है, वही पवित्र-पुगणपुरुप है । उमे ज्ञान ( आध्यामिक ज्ञान ) कहा जाय या दर्शन (आत्मानुभूति) कहा जाय या अन्य किमी नाम मे कहा जाय, वह एक ही है और अनेक नामों से जाना जाता है। बौद्ध-आचार्य भी इसी रूप में इम लोकोत्तर आध्यात्मिक ज्ञान की विवेचना करते है। वह किसी भी वाह्य पदार्थ का ग्राहक नहो होने से 'अचित' है, बाह्य पदार्थो के आश्रय का अभाव होने में अनुपलब्ध है वही लोकोत्तर ज्ञान है । क्लेशावरण और जेयावरण के नष्ट हो जाने में वह आनि-चित्त (आलयविज्ञान ) निवृत्त ( परावृत ) होता है प्रवृत्त नहीं होता है। वही अनामत्र धातु ( आवरणरहित ), अतर्कगम्य, कुगल, ध्रुव, आनन्दमा विमुविनकाय और मकाय कहा जाता है। ___ गीता मे भी कहा है कि जो सर्व-संकल्पों का त्याग कर देता है, वह योग मार्ग में आरूढ़ कहा जाता है। क्योंकि समाधि को अवस्था में विकल्प या व्यवमायात्मिका बुद्धि १. समयसार, १४४
२ मययमाग्टीका, ९३ ३. त्रिशिका २९-३० उद्धत महायान, पृ० ७०-७१ ४. गोता, ६।४