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________________ जैन, बौद्ध और गीता का साधना मार्ग श्रद्धा और समाधि दोनों ममान इमलिए है कि दोनों में चित्त विकल्प नही होते हैं। समाधि या श्रद्धा को सम्यक् दर्शन से और प्रज्ञा को मम्यक्-जान से तुलनीय माना जा सकता है। बौद्ध दर्शन का अष्टाग मार्ग मम्य-दृष्टि, मम्यक्-संकल्प, सम्यक्-वाणी, सम्यक्-कर्मान्त, सम्यक्-आजीव, मम्यक्-व्यायाम, मम्यक-स्मृति और मम्यक-समाधि है । इनमें सम्यक्-वाचा, मम्यक्-कर्मान्त और सम्यक्-आजीव इन तीनों का अन्तर्भाव शील मे, सम्यक् व्यायाम, सम्यक्-स्मृति और मम्यव-ममाधि इन तीनों का अन्तर्भाव चित्त, श्रद्धा या समाधि मे और सम्यक-पंकल्प और मम्यक-दृष्टि इन दो का अन्तर्भाव प्रज्ञा में होता है। इस प्रकार बौद्ध दर्शन में भी मौलिक रूप से त्रिविध माधना मार्ग ही प्ररूपित है। गोता का त्रिविष साधना-मार्ग-गीता मे भी ज्ञान, कर्म और भक्ति के रूप मे विविध साधना-मार्ग का उल्लेख है। इन्हे ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के नाम से भी अभिहित किया गया है। यद्यपि गीता में ध्यानयोग का भी उल्लेख है । जिम प्रकार जैन-दर्शन में तप का स्वतन्त्र विवेचन होते हुए भी उमे सम्यकचारित्र के अन्तभूत लिया गया है उसी प्रकार गीता में भी ध्यानयोग को कर्मयोग के अधीन माना जा सकता है। गीता मे प्रसगान्तर से मोक्ष की उपलब्धि के माधन के रूप मे प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवा का भी उल्लेख है ।' इनमे प्रणिपान श्रद्धा या भक्ति का, परिप्रश्न जान का और सेवा कर्म का प्रतिनिधित्व करत है । योग-दर्शन में भी ज्ञानयोग, भक्तियोग और क्रियायोग के रूप में इमी त्रिविर गावना मार्ग का प्रस्तुतीकरण हुआ है । वैदिक परम्पग मे इम त्रिविध सायना मार्ग । प्रस्तुतीकरण के पीछे एक दार्शनिक दृष्टि रही है। उममे परममत्ता या ब्रह्म के तीन पक्ष मत्य, मुन्दर ओर गिव माने गये है। ब्रह्म जो कि नैतिक जीवन का माध्य हैं इन तीन पक्षा मे युक्त है और इन तीनो की उपलब्धि के लिए ही विविध माधना-मार्ग श विधान किया गया । मत्य को उपलब्धि के लिए ज्ञान, सुन्दर की उपलब्धि के लिए भाव या श्रद्धा और शिव की उपलब्धि के लिए मेवा या कर्म माने गये हैं। उपनिपदों में श्रवण, मनन आर निदिध्यामन के रूप में भी त्रिविध साधना-मार्ग निरूपित है। गहराई से दवे नो श्रवण श्रद्धा, मनन ज्ञान और निदिध्यासन कर्म के अन्तर्गत् आ जाते है। इस प्रकार वैदिक परम्परा मे भी विविध साधना-मार्ग का विधान है। पाश्चात्य चिन्तन में त्रिविष सापना-पप-पाश्चात्य परम्परा मे तीन नैतिक आदेश उपलब्ध होते हैं-१. स्वयं को जानो ( Know Thyself ), २. स्वयं को स्वीकार करो ( Accept Thvself) और ३ स्व य ही बन जाओ ( Be Thysclf )२ पाश्चात्य चिन्तन के तीन नैतिक आदेश ज्ञान दर्शन और चारित्र के समकक्ष ही है। १. गीता ४॥३४, ४।३९ २. साइकोलाजी एन्ड मारल्स, पृ० १८०
SR No.010202
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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