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जन, बोर और गोता का साधना मार्ग
अकल्याण में तब तक कोई नहीं बच नही मकता, जब तक कि दोष-निवृत्ति के साथ-साथ मद्गुण प्रेग्क और कल्याण मय प्रवृत्ति मे प्रवृत्त न हुआ जाय । बीमार व्यक्ति केवल कुपथ्य के भवन में निवृत्त होकर ही जीवित नही रह मकता, उमे रोग निवारण के लिए पथ्य का मवन भी करना होगा । शरीर में दूपित रक्त को निकाल डालना जीवन के लिए अगर जरूरी है तो उममे नये रक्त का मचार करना भी उतना ही जरूरी है।'
प्रवृत्ति और निवृत्ति को सीमाएं एवं क्षेत्र-जन-दर्शन की अनेकातवादी व्यवस्था यह मानती है कि न प्रवृत्तिमार्ग ही शुभ ह और न एकानरूप मे निवृत्तिमार्ग ही शुभ है। प्रवनि और निवृत्ति दोनो में शुभत्व-अशुभत्व के तत्त्व है। प्रवृत्ति शुभ भी है और अशुभ भी । इमी प्रकार निवृत्ति शुभ भी है और अशुभ भी । प्रवृत्ति और निवृत्ति के अपने-अपने क्षेत्र है, स्वस्थान है और अपने-अपने स्वस्थानों में वे शुभ है, लेकिन परम्थानो या क्षेत्रो में वे अशुभ है ।
न केवल आहार से जीवन-यात्रा सम्भव है और न केवल निहार से । जीवन-यात्रा के लिा दोनो आवश्यक है, लेकिन मम्यक् जीवन-यात्रा के लिए दोनो का अपने-अपने क्षेत्रो में कार्यरत होना भी आवश्यक है । यदि आहार के अग निहार का और निहार के अग आहार का कार्य करने लगे अथवा आहार योग्य पदार्थों का निहार होने लगे और निहार के पदार्थों का आहार किया जाने लगे तो व्यक्ति का स्वास्थ्य चौपट हो जायेगा। व ही तन्व जो अपने स्वस्थान एवं देशकाल मे शुभ है, परस्थान में अशुभ रूप में परिणत हो जायेंगे।
जैन दृष्टिकोण-भगवान् महावीर ने प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों को नैतिक विकास के लिये आवश्यक कहा है। इतना ही नही, उन्होने प्रवृत्ति और निवृत्ति के अपने-अपने क्षेत्रो की व्यवस्था भी की और यह बताया कि वे स्वक्षेत्रो मे कार्य करते हुए ही नैतिक विकास की ओर ले जा सकती है। व्यक्ति के लिए यह भी आवश्यक है कि वह प्रवृत्ति और निवृत्ति के स्वक्षेत्रो एव सीमाओ को जाने और उनका अपने-अपने क्षेत्रों में ही उपयोग करे । जिस प्रकार मोटर के लिए गतिदायक यत्र (एक्मीलेटर ) और गतिनिरोधक यत्र ( ब्रेक ) दोनो ही आवश्यक है, लेकिन साथ ही मोटर चालक के लिए यह
भी आवश्यक है कि दोनो के उपयोग के अवसरो या स्थानो को समझे और यथावमर एवं यथास्थान ही उनका उपयोग करे । दोनो के अपने-अपने क्षेत्र है; और उन क्षेत्रों मे ही उनका समुचित उपयोग यात्रा की सफलता का आधार है। यदि चालक उतार पर क न लगाये और चढाव पर एक्सीलेटर न दबाये अथवा उतार पर एक्मोलेटर दबाये और चढाव पर ब्रेक लगाये तो मोटर नष्ट-भ्रष्ट हो जायगी। महावीर ने जीवन
१. देखिये-जैनधर्म का प्राण; पृ० ६८ ।