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जैन, बौद्ध और गीता का साधना मार्ग
बौख-दृष्टिकोण-बौद्ध-परम्परा में वैराग्यवाद और भोगवाद मे ममन्वय खोजा गया है । बुद्ध मध्यममार्ग के द्वारा इमी ममन्वय के मूत्र को प्रस्तुत करते है । अंगुत्तर-निकाय में कहा है, '
भिओं, तीन मार्ग हैं:- शिथिल मार्ग, कठोर मार्ग और ३ मध्यम मार्ग । भिक्षुओं, किमी-किमी का ऐमा मत होता है, ऐमी दृष्टि होती है-काम-भोगों मे दोप नहीं है। वह काम-भोगोंमें जा पड़ता है। भिक्षुओं, यह शिथिल मार्ग कहलाता है। भिक्षुओं, कठोर मार्ग कौनमा है ? भिक्षुओं, कोई-कोई नग्न होता है, वह न मछली खाता है, न माम ग्वाता है, न मुग पीता है, न मैग्य पीता है. न चावल का पानी पीता है। वह या तो एक ही घर में लेकर ग्वानेवाला होता है या एक ही कार खाने वाला; दो घरों से लेकर खाने वाला होता है या दो ही कौर खाने वाला “मान घरों मे लेकर ग्वाने वाला होता है या मात कोर खाने वाला । वह दिन में एक बार भी खाने वाला होता है, दो दिन में एक बार भी खाने वाला होता है "मात दिन में एक बार भी खाने वाला होता है, इस प्रकार वह पन्द्रह दिन में एक बार खाकर भी रहता है । भात खाने वाला भी होता है, आचाम ग्वाने वाला भी होता है, खली खानेवाला भी होता है, तिनके (घाम) खानेवाला भी होता है, गोबर ग्वानेवाला भी होता है, जगल के पेडों में गिरे फल-मल खाने वाला भी होता है। वह मन के कपड़े भी धारण करता है, कुश का बना वस्त्र भी पहनता है. छाल का वस्त्र भी पहनता है, फलक (छाल) का वस्त्र भी पहनता है, केशों में बना कम्बल भी पहनता है, पूंछ के बाला का बना कम्बल भी पहनता है, उल्लू के पगें का बना वस्त्र भी पहनता है । वह केग-दाढ़ी वालचन करनेवाला भी होता है। वह बैठने का त्याग कर निरन्तर खडा ही रहने वाला भी होता है। वह उकई बैठ कर प्रयत्न करनेवाला भी होता है, वह कॉटों की शैय्या पर मोनेवाला भी होता है। प्रातः, मध्याह्न, सायं-दिन में तीन बार पानी में जानेवाला होता है। इस तरह वह नाना प्रकार में शरीर को कष्ट या पीड़ा पहुंचाता हुआ विहार करता है । भिक्षुओं, यह कठोर मार्ग कहलाता है । भिक्षुओं, मध्यममार्ग कोनमा है । भिक्षुओं, भिक्षु शरीर के प्रति जागरूक रहकर विचरता है । वह प्रयत्नशील, ज्ञानयुक्त, स्मृतिमान हो, लोक मे जो लोभ. वैर, दौर्मनम्य है, उसे हटाकर विहरता है, वंदनाओं के प्रति "चित्त के प्रति धर्मों के प्रति जागरूक रहकर विचरता है । वह प्रपन्न-शील, ज्ञान-युक्त, स्मृति-मान हो लोक मे जो लोभ और दौर्मनस्य है उसे हटाकर विहरता है। भिक्षुओं, यह मध्यममार्ग कहलाता है । भिक्षुओं, ये तीन मार्ग है ।' बुद्ध कठोरमार्ग (देह-दण्डन) और शिथिलमार्ग (भोगवाद) दोनों को ही अम्वीकार करते है । बुद्ध के अनुसार यथार्थ नैतिक जीवन का मार्ग मध्यम मार्ग है । उदान में भी बुद्ध अपने इमी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं, 'ब्रह्मचर्य (मंन्याम) के माथ व्रतों का पालन
१. अंगुत्तरनिकाय, ३६१५१