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सम्यक् तप तथा योगमार्ग
यह किमी एक आचार-दर्शन की बपौती नही, वह तो प्रत्येक जागृत आत्मा की अनुभूति है। उमको अनुभूति से ही मन के कलुप धुलने लगते है, वामनाएँ शिथिल हो जाती है, अहं गलने लगता है । तृष्णा और कपारो की अग्नि तप की ऊष्मा के प्रकट होते ही निशेष हो जाती है। जडता क्षीण हो जाती है । चेतना और आनन्द का एक नया आयाम खुल जाता है, एक नवीन अनुभूति होती है । शब्द और भापा मान हो जाती है, आचरण की वाणी मुखरित होने लगती है।
तप का यही जीवन्त और जागृत गाश्वत स्वम्प है जो मार्वजनीन और मार्वकालिक है । सभी साधना-पद्धतिया इमे मानकर चलती है और दश काल के अनुसार इमके किमी एक द्वार से माधको को तप के इस भग महल में लाने का प्रयास करती है, जहा साधक अपने परमात्म स्वरूप का दर्शन करता है, आन्मन ब्रह्म या ईश्वर का माक्षात्कार करता है।
तप एक ऐमा प्रशस्त योग है जो आत्मा को परमात्मा म जोड देता है, आत्मा का परिष्कार कर उमे परमात्म-स्वरूप बना दता है ।