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सम्पचारित्र (गोल) नहीं होता। ४. शीलवान सदैव ही अप्रमत्त चेतनावाला होता है और इसलिए उसके जीवन का अन्त भी जाग्रत चेतना की अवस्था में होता है । ५. शील के पालन मे सुगति या स्वर्ग की प्राप्ति है।
अष्टांग साधनापप और शोल-बुद्ध के अष्टाग साधना-पथ में मम्यक् वाचा, मायक् कर्मान्त और सम्यक् आजीव ये तीन शील-स्कन्ध है । यद्यपि मज्झिन निकाप और अभिधर्मकोश व्याख्या के अनुमार शील-स्कन्ध मे उपर्युक्त तीनो अंगो का हो ममाव किया गया है। लेकिन यदि हम शील को न केवल दैहिक वग्न् मानमिक भी मानते है तो हो ममाधि-स्कन्ध में से सम्यकव्यायाम को और प्रज्ञा-स्कन्ग में में सम्यक माप को ही शील-स्कन्ध मे ममाहित करना पड़ेगा। क्योंकि गकल्प आचरण का चैतनिक आधार है और व्यायाम उमकी वृद्धि का प्रयत्न । अतः उन्हे गील-स्कन्ध में ही लेना चाहिए। __यदि हम शील-स्कन्ध के तीनों अंग तथा ममानि-सन्ध के मम्यक व्यायाम और प्रज्ञा-स्कन्ध के मम्यक् मकल्प को लेकर बौद्ध-दर्शन में शील के स्वरूप को गमहाने का प्रयत्न करें तो उमका चित्र इम प्रकार में होगामम्यक् वाचा १. मृपावाद विरमण
२. पिशुनवचन विग्मण ३. पुरुपवचन विग्मण
४ व्यर्थसंलाप विग्मण मम्यक् कर्मान्त १. अदत्तादान विग्मण
२. प्राणातिपात विरमण ३. कामेपमिथ्याचार विग्मण
४. अब्रह्मचर्य विग्मण सम्यक् आजीव (अ) भिक्षु नियमों के अनुमार भिक्षा प्राप्त करना
(ब) गृहम्थ नियमों के अनुमार आजीविका अजित करना सम्यक् व्यायाम १. अनुत्पन्न अकुशल के उत्पन्न नहीं होने देने के लिए प्रयत्न
२. उत्पन्न अकुशल के प्रहाण के लिए प्रयत्न ३. अनुत्पन्न कुगल के उत्पादन के लिए प्रयन्न
४. उत्पन्न कुगल के वैपुल्य के लिए प्रयत्न सम्यक् संकल्प १. नैष्कर्म्य संकल्प
२. अव्यापाद मंकल्प
३. अविहिमा मंकल्प यदि तुलनात्मक दृष्टि से बौद्ध-दर्शन के शोल के स्वरूप पर विचार करे तो ऐमा १. देखिए-अर्ली मोनास्टिक बुद्धिज्म, पृ० १४२-४३