________________
प्राचार्य चरितावली
क्रिया उद्धार किया । कष्ट सहकर भी आप पीछे नही हटे । इससे प्रभावित होकर वोहरा वीरजी आपके भक्त हो गये । सं० १७१० का चातुर्मास आपने सूरत मे ही किया । आपकी परम्परा गुजरात मे खभात गच्छ के नाम से प्रसिद्ध है ।।१५६॥
लावणो।। सोम कान्ह ऋषि भूल पुरुष हुए नामी तारा ऋषि का वंश गुर्जरारामी । अमर्रामह पजाब गच्छ के मुखिया, रामरतनजी भी थे गुरण के दरिया ।
भिन्न कुलो मे मूल न जाय विसारी ।। लेकर० ॥१५७।। अर्थ:-पूज्य लवजी के प्रमुख शिष्य ऋषि सोमजी और ऋषि कानजी हुए । तारा ऋपि का परिवार गुजरात मे रहा और काला ऋषि का परिवार मालवा मे विचरता रहा ।
पूज्य सोमजी के शिष्य हरिदासजी से पंजाव परम्परा चली । जो पूज्य अमरसिहजी और पूज्य रामरतनजी के नाम से प्रसिद्ध हुई । इस प्रकार एक ही मूल से विभिन्न कुल निकल पडे ।।१५७।।
|| लावरणी।। लवजी के उद्धार ने क्रांति मचाई, गच्छवासी ने अपनी पारण फिराई। स्थानाशन का निषेध घोषित कीना, भग्न गेह में मुनि ने डेरा दीना।
ढ़ ढ़क ऐसा कहन लगे नर नारी ॥ लेकर० ॥१५८।। अर्थ.- लवजी के क्रिया उद्धार से गच्छवासियो मे बडी खलबली मची। उन्होने इनके विरुद्ध प्रचार कर आहार देना, उपाश्रय देना बन्द कर दिया । स्थान नहीं मिलने से लवजी अपने मंतो महित सूने मकान मे