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________________ Co श्राचार्य चरितावनी शिवजी के गरए चरित्र उजारा, दरियापुरी के नाम वश विस्तारा । श्राठ कोटि से सामायिक लो धारो || लेकर० || १५५|| अर्थः- पूज्य जीवराजजी के बाद क्रियोद्धारक पूज्य धर्मसिंहजी हुए । यापने लोकागच्छीय श्री पूज्य शिवजी की अनुमति से दरिया पीर की दरगाह मे रात्रिवास कर वहां के पीर के उपमर्गों को सहन करके अन्त मे उसे अपना वशवर्ती बना लिया | इससे उनके उत्कृष्ट सन्त बल की बड़ी ख्याति हुई । एवं नगर के मुख्य द्वार दरिया पोल पर अधिकतर धर्म उपदेश करते रहने से आपकी परम्परा दरियापुरी संप्रदाय के नाम से कही जाने लगी । पूज्य शिवजी के गच्छ से निकल कर ग्रापने किया उद्धार किया । आपका मतव्य था कि श्रावक को सामायिक से ग्राठ कोटि से ही पत्रखांण करना चाहिये । ऋत यापकी परम्परा ग्राठ कोटि के नाम से भी पुकारी जाने लगी ।। १५५ ॥ ||लावरणी॥ ऋषि लवजी का फैला नाम सवाया, कंबापुरी मे किया उद्धार कराया । वोरा वीरजी को प्रतिबोध दिलाया, कष्ट सहन कर भी नहि कदम हटाया। गुर्जर मे खंभात गच्छ यश धारी ॥ लेकर० ॥१५६॥ अर्थ - धर्मसिहजी के समकालीन एक क्रिया उद्धारक लवजी भी हुए । क्रिया उद्धारको मे इनका नाम खूव फैला । कहा जाता है कि सूरत के वोहरा वीरजी का पत्र पाकर खंभात के नवाव ने इनको तीन दिन तक अपने यहाँ बिठाये रखा । फिर भी ये अपने विचार से विचलित नही हुए । फलस्वरूप वैगम का मन पिघला और उसके कहने से प्राप मुक्त कर दिये गये । लवजी ने अपने दो साथी मुनियो के साथ कवापुरी ( खंभात) मे
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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