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प्राचार्य चरितावली
ठहरे, जिससे लोग उन्हे ढू ढिया कहने लगे । मुनि ने हे पभाव से कहे गये कथन की भी सुलट भाव से लिया और बोले, "भाई ! ठीक है, हमने ढूढते २ सत्य पाया इसलिये टू ढिया कहते हो, सो सही ही है।"
___ इस प्रकार "टू ढक" और दूसरे साधु-मार्गी के नाम से सम्प्रदाय प्रसिद्ध हुआ ॥१५८|
। लावणी ॥ हरजी से कोटा समुदाय कहाया, दौलतरामजी मुख्य हुए मुनिराया। हुक्मीचन्दजी पौत्र शिष्य कहलाये, पूज्य जवाहर, सना नाम धराये ।
हुए प्रभावक सत प्रदेश विहारी ॥ लेकर० ॥१५६॥ अर्थ -धर्मसिह जी की तरह इनके समकालीन अमीपालजी, श्री पालजी और हरजी ने भी गच्छ त्याग कर क्रिया उद्धार किया। पूज्य हरजी से कोटा परम्परा चालू हुई ।
दौलतरामजी के शिष्य श्री लालचन्द जी से पूज्य हुक्मीचन्दजी की परम्परा चली। आगे चलकर पूज्य जवाहरलालजी महाराज और पूज्य मन्नालाल जी महाराज से इसके भी दो कुल चल पड़े। दोनो परम्पराम्रो में कई प्रभावशाली और उपदेशक सत हुए जिन्होने प्रान्त प्रान्त मे घूम कर धर्म प्रचार किया ॥१५॥
॥लावरणी॥ सोलह मे हुए धर्मदास अवतारी, पोतिया वध को छोड़ लिया व्रत धारी। धर्मदास के धनाजी बड़भागी, मरुभूमि में हुए शिष्य सोभागी।
मूलचन्द मुनि ने गुर्जर भू तारी ॥ लेकर० ॥१६०॥ अर्थ -स० १७१६ मे धर्मदासजी महाराज ने पोतियावंध परम्परा