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________________ ( ४ ) लिये प्रत्येक छन्द का अर्थ भी साथ-साथ सुनाने की प्राचार्य श्री ने कृपा की। इसे लेखबद्ध भी किया गया जिसका सर्वागीण रूप इस प्रकाशन के रूप मे पाठको के सम्मुख प्रस्तुत है। ____ इतिहास-प्रेमी भी इस ग्रन्थ का लाभ उठा सके, इस दृष्टि से अन्त के परिशिप्टो मे लोंकागच्छ की परम्परा और धर्मोद्धारक श्री जीवराजजी महाराज, श्री धर्मसिंहजी महाराज, श्री लवजी ऋपि, श्री हरजी ऋषि, श्री धर्मदासजी महाराज आदि से सम्बन्धित विभिन्न शाखाम्रो का विवरण भी दे दिया गया है। विद्वानो और गोधार्थियो की सुविधा के लिए अनुक्रमणिका भी दे दी गई है। इससे इस कृति मे आये हुए किन्ही भी प्राचार्य, मुनि, राजा, श्रावक, ग्राम, नगर, प्रान्त, गण, गच्छ, शाखा, वंश, सूत्र, ग्रन्थ आदि के सम्बन्ध मे सुगमता व शीघ्रता से तत्काल ज्ञातव्य प्राप्त किया जा सकता है । अन्त मे शुद्धिपत्र भी जोड दिया गया है । पाठको से निवेदन है कि वे अशुद्धियो को सुधार कर पढे । ___ इस ग्रन्थ के लेखन मे धर्म सागरीय तपागच्छ पट्टावली, हस्तलिखित स्थानकवासी पट्टावली, प्रभु वीर पट्टावली और पट्टावली समुच्चय आदि ग्रन्थो का सहारा लिया गया है। प्राचीन हस्तलिखित पत्रो का एव आचार्य श्री ने स्वयं अपनी धारणा का भी इसमे उपयोग किया है। उन समस्त ग्रन्थकारो एवं ग्रन्थो को उपलब्ध कराने वाले सज्जनो एवं ज्ञान-भंडारो के प्रति हम हृदय से कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इसके सम्पादन मे हमे श्री गजसिंहजी राठोड, जैन न्यायतीर्थ का और अनुक्रमणिका तैयार करने में श्रीमती शान्ता भानावत, एम० ए० का अमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ है, तदर्थ हम उनके आभारी हैं। इसी तरह जात-अजात जिन महानुभावो का सहयोग हमे इसमे मिला है, उन सभी के प्रति हम कृतज्ञ हैं। आशा है, यह ऐतिहासिक काव्यकृति पाठको को न केवल जैन परम्परा का ज्ञान करायेगी, वरन् उन्हे इतिहास के प्रति अधिक सजग और अनुरक्त भी बनायेगी। पूर्ण सावधानी रखते हुए भी ग्रन्य के लेखन मे अथवा मुद्रण मे कही कोई ऐतिहासिक त्रुटि या स्खलना रह गई हो या कही कुछ किसी को अप्रिय लेख आ गया हो तो सत्य के अन्वेपक पाठक उसके लिये हमे क्षमा करते हुए हंस की नीर-क्षीर विवेक दृष्टि से काम लेगे एव आवश्यक सगोधन एवं त्रुटि के बारे मे हमे सूचित करने की कृपा करेगे ताकि अगली आवृत्ति मे हम उनका उचित निराकरण कर सके । -सोहनमल कोठारी लाल भवन, जयपुर मत्री १-१-१९७१ जैन इतिहास समिति, जयपुर ।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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