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प्रकाशकीय
'पट्टावली प्रवन्ध सग्रह' के बाद 'जैन आचार्य चरितावलो' के रूप मे जैन इतिहास समिति का यह दूसरा प्रकाशन पाठको के समक्ष प्रस्तुत है।
'पट्टावली प्रवन्ध सग्रह' मे जहाँ लोकागच्छ और स्थानकवासी परम्परा से सम्बन्धित १७ पट्टावलियाँ मूल रूप मे सकलित की गई थी, वहाँ इस कृति मे भगवान् महावीर से लेकर आज तक के प्रमुख जैनाचार्यों की परम्परा और उनकी चरितावली को पद्यबद्ध किया गया है।
इस काव्यकृति के रचनाकार है श्रद्धेय आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज । आचार्य श्री विगत कई वर्षों से जैन परम्परा के प्रामाणिक इतिहास-लेखन मे मनोयोगं पूर्वक लगे हुए है। उसका प्रथम भाग (भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक) अव मुद्रित हो रहा है।
इतिहास का विषय गहन और व्यापक होने के साथ-साथ शुष्क और नीरस भी है। उसमें सभी समान रुचि से रस नहीं ले पाते । परिणाम यह होता है कि सामान्य जन अपनी परम्परा, सस्कृति और धर्माचार्यो सम्बन्धी आवश्यक जानकारी से भी वचित रह जाते है। इस कमी को पूरा करने के लिये प्राचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज ने अपने सावनानिप्ठ व्यस्त जीवन मे से कुछ समय निकाल कर जैन परम्परा के इतिहास को राग-रागिनियो मे बाघ कर, उसे सरस बनाकर सरल भाषा में प्रस्तुत किया है जिसे कठस्थ कर सगीतप्रिय सामान्य व्यक्ति भी उसका आनन्द ले सकता है । इस उपकार के लिए समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा। .
विपन और भाव को अधिकाधिक स्पष्ट करने के लिए प्रत्येक छन्द का अर्थ भी साथ-साथ दे दिया गया है।
इस कृति के इस रूप मे पाठको के सम्मुख पाने की भी एक कहानी है । पाँच-सात वर्ष पूर्व अपने प्रवचन मे आचार्य श्री ने इस चरितावली का मूल रूप मे वाचन किया। श्रोता इसमे बड़े प्रभावित हुए। जोधपुर, पाली, व्यावर, नागौर श्रादि नगरो के जिज्ञासु धावको ने इसको अधिकाधिक सुनने की उत्कंठा प्रकट की। बहुतो ने इसके विस्तृत नोट भी लिये । पर मूल पाठ के कवितामय होने से पूरे भाव स्पप्ट नही होने थे। इस पर इसके विषय और भाव को अधिकाधिक स्पष्ट करने के