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आचार्य चरितावली वर्ष तक गुरुचरणो मे ज्ञानाराधन करते रहे। गुरुआज्ञा पालन ही उन्होने अपना मुख्य व्रत मान रखा था ।।१६।।
|लावरणी॥
वीर काल गये वर्ष अट्ठाणू पीछे, शय्यंभव किया काल सुनो अब नीचे । यशोभद्र ने गुरू से ज्ञान मिलाया, योग्य समझ उनको शासन संभलाया । रहे वर्ष पच्चास संघ अधिकारी लेकर।॥१७॥
अथ :-वीर निर्वाण ६८ की साल जव प्राचार्य शय्यभव का स्वर्गवास हो गया, तो उनके प्रमुख शिष्य यशोभद्र ने शासन का भार सभाला। उन्होने विनयपूर्वक गुरु से ज्ञान मिलाया, अतः संघ ने भी योग्य समझकर आपको ही उत्तराधिकारी नियुक्त किया । आप पचास वर्ष तक कुशलता से चतुर्विध सघ का सचालन करते रहे ।।१७।।
॥लावरणी॥
यशोभद्र मुनि शासन को दीपाते, चरणों में पडितजन बहु शोभाते । वीर काल शत पर अठचालिस जानो, हए स्वर्ग के देव महद्धिक मानो। शिष्य हुए चालीस महाव्रत धारी लेकर॥१८॥
अर्थ:-आचार्य यशोभद्र भी चौदह पूर्व के ज्ञाता थे, उनकी विद्वत्ता से प्रभावित हो बडे-बडे पडित उनके चरणो मे रहते । पचास वर्ष के दीर्घकालीन संयम का पालन कर इन्होने जिन शासन को दीपाया और वीर सवत् १४८ मे स्वर्गवासी होकर महद्धिक देव हुए। उनके सभूतिविजय और भद्रवाहु जैसे चालीस शिष्य थे ॥१८॥