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________________ श्राचार्य चरितावली ॥ लावणी ॥ संभूतिविजय भी सेवा में चल सुन कर के उपदेश ज्ञान मन चौदहपूर्वी गुरुपद के अधिकारी, श्रद्धशती कम दोय (४८) रहे व्रत धारी । पूर्ण आयु नवति (६०) वत्सर या भारी || लेकर ॥ १६ ॥ श्राये, भाये । १३ अर्थ :- महिमा सुनकर पंडित, सभूतिविजय भी यशोभद्र की सेवा मे आये और उनके उपदेश सुन कर दीक्षित हो गये । चौदह पूर्व के ज्ञाता बनकर ये भी यशोभद्र के उत्तराधिकारी हुए। ये आठ वर्ष तक आचार्य पद पर रहे और कुल ४८ वर्ष तक सयम का पालन कर १० वर्ष की पूर्ण आयु मे स्वर्गवासी हुए ||१६|| ॥ लावणी ॥ जंबू आदिक थे बारे, स्थूलभद्र स्थविर शिष्य जिन शासन सेवा धारे । आठ वर्ष गरि पद रह स्वर्ग सिधारे, जगप्रसिद्ध फिर भद्रबाहु पद धारे । एक तंत्र शासन चलता सुखकारी ॥ लेकर ॥ २० ॥ अर्थ – आपके नन्दनभद्र, उपनन्द, तीसभद्र, गणिभद्र, पूर्णभद्र, स्थूलभद्र, ऋजुमती, जम्बू, दीर्घभद्र, पाण्डुभद्र आदि वारह प्रमुख शिष्यो में स्थूलभद्र, जंबू आदि मुख्य थे । इनमे कई शिष्य स्थविर और शासन की सेवा करने मे कुशल थे । आठ वर्ष तक प्राचार्य पद पर रहने इनके पट्ट पर जगत्प्रसिद्ध लघु गुरुभ्राता ग्रार्य भद्रवाहु विराजे । इस समय तक चतुविध संघ मे एकतंत्र शासन चलता रहा । यह श्लाघनीय वात है ||२०|| के पश्चात् भद्रबाहु का परिचय और भविष्य का कथन ॥ लावणी ॥ पुत्रजन्स की देन बधाई श्रावे, 1 1
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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