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श्राचार्य चरितावली कल्याण कर सके, इस पर चिन्तन करते हुए उन्होने चौदह पूर्व से दस अध्ययनो का उद्धरण कर अलग एक सूत्र की रचना की । संध्या समय मे वह पूर्ण सम्पन्न हुआ, इसलिये इस सूत्र का नाम दशवैकालिक रखा गया ।।२।।।।।।
॥ लावणी ।। वर्ष अठ्ठावीस गृहजीवन में गाले, एकादश वत्सर गुरुचरण निहाले । युग प्रधान पद वर्ष तेवीस संभाला, वीर काल प्राणू सुर थये पाला।
मनक मुनि ने भी ली सेवा धारी लेकर०॥१५॥ अर्थ:-वीर सवत् ७५ मे प्रभवाचार्य के स्वर्गस्थ होने पर मुनि शय्यभव प्राचार्य पद पर आसीन हुए, जिसका परिचय इस प्रकार है-- अट्ठाईस वर्ष तक ग्रहस्थ जीवन में एक पडित के रूप मे रहे, और ग्यारह वर्ष तक उन्होने आचार्य प्रभव स्वामी के पास विनयपूर्वक शिक्षा ग्रहण की। फिर उनके स्वर्गवास होने पर युग प्रधान प्राचार्य के पद पर आसीन होकर (२३) तेवीस वर्ष तक शासन चलाया और वीर निर्वाण अठाणवे वर्ष मे समाधिपूर्वक आयुष्य पूर्ण कर स्वर्ग पधारे ॥१५॥
|| तर्ज ख्याल ॥ मनक शिष्य के साधनहित वे, पर्ण लगाते ध्यान ।
मनक मुनि ने छः महिने में,
• किया आत्म कल्याण हो ॥गुरु०॥४॥ अथ :-आचार्य शय्यभव ने मनक मुनि के आत्मकल्याणार्थ पूरी तत्परता से ध्यान दिया और मनक मुनि ने भी गुरु के निर्देशानुसार चल कर छ• मास के अल्प समय मे ही अपना कल्याण कर लिया ।।४।।
॥ मू० ॥ मनक भिक्षु के स्वर्ग गमन से, नयन भराये आज । यशोभद्र ने पूछा कारण, भेद बताया खास हो ।गुरु०॥५॥