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प्राचार्य चरितावली
विनय सहित शिक्षा ले गुरु से,
निज स्वरूप पहचाना है ।।५।। अर्थ:-गुरु के सदुपदेश से दीक्षित होकर मनक मुनि ने जन्म सफल करने का निश्चय किया । उसने गुरु से सविनय शिक्षा प्राप्त की और अपने शुद्ध स्वरूप को पहचान लिया ॥५॥ गुरू का उपदेश
॥ तर्ज ख्याल ॥ गुरुदेव बतावे,
साधन समझावे मुक्तिमार्ग का ॥गुरु०॥टेर।। खाना पीना और घूमना,
यतना से सब काम । विधियुत चलते पाप न लागे,
मिले मुक्ति का धाम हो ॥गुरु०॥१॥ मनक कहे गुरुदेव बताओ,
सब शास्त्रो का सार । अल्प आयु लख शय्यंभव ने,
किया शास्त्र उद्धार हो ।गुरु०॥२॥ दश अध्याय पूर्व से लेकर,
रचना की तैयार । काल विकाल में पूरण किया यो,
दशकालिक धार हो ॥गुरु०॥३॥ अर्थ-मनक मुनि को शिक्षा देते हुए गुरु वोले, शिष्य ! पाप कर्म से बचने के लिये आवश्यक है कि खाना, पीना, घूमना, सोना और भापण आदि सव काम यतना से किये जायें, जिससे आत्मा हल्की होकर मुक्तिमार्ग की ओर अग्रसर हो सके ॥१॥ ___मनक वोले, गुरुदेव ! मुझे ऐसा मार्ग वतलायो कि मै अल्प समय मे ही अपना कल्याण कर सकू । गुरुदेव शययभव ने उसके प्रायुकाल का विचार किया तो मात्र छ महिने का ही प्रायु शेप पाया। इतने अल्पकाल में मनक मुनि ज्ञान-क्रिया का सम्यक् अाराधन कर किस प्रकार अपना