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________________ आचार्य चरितावली १२७ सवत् १६०६ की मृगसिर शुदी ५ के दिन अहमदाबाद मे ऋपि जीवाजी के पास आप दीक्षित हुए । संवत् १६२६ को ज्येष्ठ वदी ५ के दिन ऋषि कु वरजी के पट्ट पर आपको प्राचार्य नियुक्त किया गया। कडी कलोल के पास गाव मे पधार कर आपने अनेक लोगों को प्रतिवोव दिया । आपके उपदेश से प्रभावित होकर लोगो ने जैन धर्म ग्रहण किया और अपने गलो से कठिया उतार उतार कर कुए मे गिरा दी। आज भी वह कुआ "कंठिया कुवा" के नाम से प्रसिद्ध है । तत्पश्चात् मच्छु काठा की अोर विहार कर आप मोरवी पधारे और वहां श्रीपाल सेठ आदि ४००० व्यक्तियो को प्रतिवोध दे कर श्रावक बनाया। (११) ऋषि रत्नसिंहजी श्रीमल्लजी ऋषि के पीछे ऋपि रत्नसिहजी हुए। आप हालार प्रान्त के नवानगर निवासी, सोल्हाणी गोत्रीय श्रीमाल सूरशाह के पुत्र थे। आपने अपनी पत्नी को वोध दे कर : व्यक्तियों के साथ सं० १६४८ ने अहमदावाद मे दीक्षा ग्रहण की । सवत् १६५४ की ज्येप्ठ वदी ७ के दिन पूज्य श्रीमल्लजी ने स्वय पापको पूज्य पदवी प्रदान की। (१२) पूज्य केशवजी ऋषि मारवाड के दुनाडा ग्राम मे आपका जन्म हुया । आपके पिता का नाम श्रीश्रीमाल साहबजी (प्रभु वीर पट्टावली के अनुसार विजयराज अोसवाल) और माता का नाम जयवत देवी था। आपने स. १६७६ को फाल्गुन वदी ५ को ऋपि रत्नसिंहजी के पास ७ व्यक्तियों के साथ दीक्षा ग्रहण की । सवत् १६८६ की ज्येष्ठ सुदी १३ को संघ ने मिल कर आपको पूज्य रत्न ऋपिजी के पट्ट पर प्राचाय नियुक्त किया। प्रभुवीर पट्टावली मे इस दिन आपका स्वर्गवास होना लिखा है, जो सही प्रतीत नहीं होता । ये केशवजी नान्ही पक्ष के है। (१३) ऋषि शिवजी महाराज प्राचार्य केशवजी के पट्ट पर श्री शिवजी ऋपि हुए । आप नवानगर निवासी श्रीमाली सिघत्री अमनिह के पुत्र थे। आपकी माता का नाम तेजवाई था। आपका जन्मकात १६५४ है। आपने सं० १६६६ मे श्री रत्नसिंहजी के पाम दीक्षा ली।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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