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________________ १२६ प्राचार्य चरितांवली (१४) कर्मसिहजी ऋपि (१४) श्री सघराजजी ऋषि (१५) केशवजी ऋषि (१५] श्री सुखमल्लजी ऋषि (१६) तेजसिहजी ऋषि (१६) श्री भागचन्द्रजी ऋपि (१७) कानजी ऋषि (१७) श्री वालचन्द्रजी ऋपि (१८) तुलसीदास जी ऋषि (१८) श्री माणकचन्द्रजी ऋपि (१६) जगरूपजी ऋषि (१६) श्री मूलचन्द्रजी ऋषि (काल सं० १८७६) (२०) जगजीवनजी ऋषि (२०) श्री जगतचन्द्र जी ऋपि (२१) मेघराजजी ऋषि (२१) श्री रत्नचन्द्रजी ऋपि (२२) श्री सोमचन्द्रजी ऋपि । (२२) श्री नृपचन्द्रजी ऋषि (अन्तिम गादीधर, आगे गादीधर नहीं) (२३) श्री हरखचन्द्रजी ऋपि (२४) श्री जयचन्द्र जी ऋषि (२५) श्री कल्याणचन्द्रजी ऋषि (२६) श्री खूबचन्द्र सूरीश्वर (२७) श्री न्यायचन्द्र सूरीश्वर नान्ही पक्ष के कुछ प्राचार्यों का परिचय (६) श्री जीवाजी ऋपि के पट्ट पर ऋपि कु वरजी हुए। प्राचीन पत्र के अनुसार माता पिता आदि ७ व्यक्तियो के साथ संवत् १६०२ मे आप जीवाजी ऋषि के पास दीक्षित हुए । जब आप वालापुर पधारे तो वहा के थावको ने आपको पूज्य पदवी प्रदान की, तब से कुवरजी के साघु नान्ही पक्ष के कहे जाने लगे। (१०) ऋषि श्रीमल्लजी : आपका जन्म अहमदावाद निवासी शाह थावर पोरवाल के यहा हुआ । आपकी माता का नाम कुअरी था।
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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