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आचार्य चरितावली अर्थ -शय्यभव भट्ट की बात सुनकर कलाचार्य भयभीत हुए और वोले-“वास्तव मे जिनेश्वर का मार्ग ही तत्त्व है, और उसका सही मर्म यहां विराजित प्रभवमूरि समझा सकते है । वही दुखमुक्ति का सच्चा मार्ग है । यज्ञ तो देवता की प्रसन्नता के लिये किया जाता है, उसमे दिये हुए दानादि से शुभ कर्म का वध होकर कभी स्वर्ग मिल सकता है । परन्तु वह भवभ्रमण को नही टाल सकता ।।८।।
॥ लावणी ॥ प्रभवसूरि के निकट प्राय यो बोले,
तत्त्व बतायो तो हम होगे चेले । भेद खोलकर गुरुवर ने समझाया,
. शय्यंभव के मन का भरम मिटाया ।
छोड़ सम्पदा और त्याग दी नारी ॥ लेकर० अर्थ:-कलाचार्य की बात सुनकर शय्यभव को जिज्ञासा जागृत हई और वह आचार्य प्रभवा के चरणो मे पाकर बोला- "महाराज | तत्त्व वताइये, मै आपका शिष्य वनने को तैयार है। प्राचार्य ने भी भेद खोल कर धर्म का सही मार्ग समभाया, जिससे शय्यभव के मन का सशय दूर हुआ और उसने घर, दारा एव वैभव का त्याग कर उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया ॥६॥
॥ लावणी ॥ शययंभव ने गुरु से ज्ञान मिलाया , बड़े भाग से चौदह पूर्व घराया। गरु के पीछे शासन को सभाला , श्रमणवर्ग भी था मोतिन की माला ।
दीपे शासन वीर प्रभु का, भारी ॥लेकर० ॥१०॥ अर्थः -आचार्य प्रभवा से दीक्षित होकर शय्यभव ने तत्त्वातत्त्व का जान मिलाया और अहोभाग्य से चौदह पूर्व के ज्ञान का ज्ञाता बन गया। उन्होने गुरु के पीछे धर्मशासन को अच्छी तरह सभाला। उस समय के
(१) स्वर्ग कामो यजेत।