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प्राचार्य चरितावली
हितैषियो का बहिर्गमन
॥ लावणी ॥ हस्ती, पन्ना देख दशा प्रकुलाये, गरिगवर को अपना ज्ञापन कहलाये। हो निराश जिन शासन रीत निभाने, सघ पार्टी का त्याग किया मनमाने ।
यथाशक्ति शासन सेवा ली धारी ॥ लेकर० ॥१९७॥ अर्थ - वयोवृद्ध प्र० श्री पन्नालालजी महाराज साहव और उपाध्याय श्री हस्तीमलजी महाराज साहव को यह दशा देखकर बडा खेद हुआ, उन्होने प्राचार्य श्री को ज्ञापन किया कि सघ की व्यवस्था न सुधरने पर हम लोगो को निराश हो संघ से अलग होना पड़ेगा। जिन शासन की रीति निभाने और कपाय-वृद्धि से बचने के लिये २०२५ मे दोनो ने सघ से अपना सवध विच्छेद कर लिया । शक्तिपूर्वक स्वतन्त्ररूप से शासन और संघ की सेवा करना, यही इन दोनो की भावना रही। श्रमणसंघ कहीं छिन्न-भिन्न नहीं हो जाय इस दृष्टि से इन्होने अपने सहयोगी मरुधर मुनि श्री चादमल जी महाराज साहब और पं० श्री पुष्कर मुनि को भी संघ त्याग की प्रेरणा नहीं दी ।।१६७॥
।। लावणी ॥ जनपद मे आजादी का युग पाया, जैन जगत् ने भी कुछ पलटा खाया। सम्प्रदाय के झगड़े कोई न व्हावे, प्रेम मिलन को बाहर कदम बढ़ावे । कपट भाव अन्तर से कर दो न्यारी ॥ लेकर० ॥१६८।।
वर्तमान में क्या करे 'अर्थ.- देश मे जब से आजादी का युग आया धार्मिक जगत् और खास कर जैन समाज ने भी अपना रूप बदल दिया। संप्रदाय के झगडे