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________________ प्राचार्य चरितावली सम्मेलन हो, उसमे जो निर्णय किया जायगा वह हमें मंजूर होगा । अनुभवी और उत्साही थावको ने भी पूज्य श्री का सकेत पाकर हर्पित हो ऐसा सम्मेलन करने का निश्चय किया ॥१६९।। ॥ लानरणी ॥ शासनसेवा-रसिक श्रावक कई आये, रतन, टेक, दुर्लभ सब के मन भाये। मिलकर सबने पूरा जोर लगाया, सौराष्ट्र धरा का भी सहयोग सवाया। शासन हित सबकी थी शुभ तैयारी ॥ लेकर० ॥१७०।। अर्थः-शासन सेवा की भावना से कई श्रावक आगे आये और महासभा के माध्यम से इस सम्मेलन के लिये भारतीय स्तर पर काम चालू कर दिया। इसमें अमृतसर के लाला रतनचन्द, लाला टेकचन्द, जम्बू के दीवान विसनदास प्रादि, मोरवी के दुर्लभजी झवेरी, अमृतलाल रायचन्द, दक्षिण के मूथा मोतीलाल, कुन्दनमलजी फिरोदिया वकील, भवेरचन्द जादव और सौराष्ट्र के अन्य सदस्य भी पूरे सहायक थे ।।१७०॥ लावरणी। प्रेमी श्रावक घूम घूम समझावे, सन मुनियों की स्वीकृति प्राप्त करावे। सम्मेलन हित प्रामंत्रण कई आवे, अजयमेरु का सव ही भाग्य सरावे । ' तीर्थ धाम सो बनी पुरी सब सारी ।। लेकर ॥१७१॥ अर्थः-प्रेमी श्रावको ने घूम घूम कर मुनिराजो को अपने विचार समझाये, सवने मुनि सम्मेलन की आवश्यकता को स्वीकार किया । पर यह सम्मेलन किस स्थान पर हो इसके लिये स्थान २ से निमन्त्रण पाने लगे। व्यावर, अजमेर, दिल्ली आदि के निमत्रणो मे से अजमेर का निमन्त्रण स्वीकार किया गया । कच्छ, काठियावाड, गुजरात और पंजाब तथा
SR No.010198
Book TitleJain Acharya Charitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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