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आचार्य चरितावली
महाराष्ट्र आदि सुदूर क्षेत्रो के भो संकडो मुनि इस सम्मेलन में पधारे । सदियो से विछुड़ी जैन शासन की ये धाराए एक स्थान पर आपस मे गले मिली । जैन श्रमण-संघ का यह सम्मेलन महान् तथा अभूतपूर्व था ॥१७॥
॥ लावणी ॥ पर्व संवत्सरी एक कररण मन धारा, अजीव मत का पूर्ण किया निबटारा। मालव गरण के भेद का बड़ा झमेला, देश देश में फैला असर विषैला ।
जन गण में अनशन को थी तैयारी॥ लेकर० ॥१७२।। अर्थः-सम्मेलन में तिथिपर्व की एकता के लिये लम्बी चर्चा के बाद यह निश्चय हुआ कि सम्पूर्ण स्थानकवासी समाज मे पक्खी-सवत्सरी एक दिन मनाई जावे । इसके लिये प्रमुख मुनियो एव विद्वान् श्रावको की एक संयुक्त "तिथि निर्णय समिति'' का गठन किया गया।
मुनि कुदनमलजी आदि सतो मे अनाज को अजीव मानने की परम्परा थी । उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज के नेतृत्व मे इसकी विस्तृत चर्चा होकर सदा के लिये इस मतभेद को भी दूर कर दिया गया। सचित-अचित की समस्या पर भी विचार किया गया। संगठन के लिये पूज्य जवाहर लालजी महाराज के वीर संघ की योजना पर भी लंबी चर्चा हुई। पर हुक्मी चन्दजी महाराज की संप्रदाय के दोनो पक्षो का आपसी मतभेद इतना गहरा था कि उसने एकता के सारे प्रयत्नो को विफल कर दिया था। मुनि मिश्रीमलजी ने दोनो पक्षो को मिलाने के लिये अनशन भी कर रखा था। सम्मेलन मे भी इस प्रश्न ने मुख्य स्थान ले लिया। 1१७२।।
॥ लावणी ॥ वर्धमान-दुर्लभ ने काम संवारा, पूज्य जवाहर ने भी मन को मारा ।