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श्राचार्य चरितावली
श्रशुभ योग कब टूटी संधि हमारी ॥ लेकर०॥१६८॥
अर्थः- सं० १८१० के शुभ वर्ष मे पचेवर ग्राम मे प्रमुख सतो का प्रेम मिलन हुआ । चार संप्रदाय के मुख्य मुनियों ने मिल कर वैपाख शुक्ला पंचमी को जैन मुनि के जीवन की कुछ सर्व मान्य सामान्य ग्राचार संहिता तैयार की एव तदनुरूप कुछ मर्यादाएं बाध कर एक संगठन की भूमिका का निर्माण किया । इससे जिन शासन के सभी लोग परम प्रसन्न थे ।। १६७॥
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एक वर्ष के बाद सं० १८११ की वैपाख कृष्णा दशमी को फिर मेड़ता मे पूज्य लालचन्दजी महाराज की परम्परा के पूज्य श्रमरसिहजी व दीपचन्दजी ग्रौर पूज्य भूधरजी महाराज के साधु साध्वियो का राजस्थान मुनि मण्डल की ओर से एक संगठन कायम हुआ । इस प्रकार भारत वर्ष की प्रमुख संप्रदायो का एक विधि पूर्वक पुनः सगठन हुआ, जिसमे श्रमणी वर्ग भी साथ था । सभी गरण इस संगठन से बड़े प्रसन्न थे । लेकिन यह प्रकृति का नियम है कि शुभ योग एवं शुभ कार्य दीर्घकाल तक स्थिर नही रहते 1 तदनुसार न मालूम कब कहा और कैसे हमारा यह संगठन पुनः टूट गया कहा नही जा सकता । इतिहास की कडिया इस बारे मे मौन है || १६८ ।।
॥ लावणी ॥।
सदी बीसवी से शुभ अवसर आया, पर्व ऐक्य हित शुभ संदेशा लाया । श्रावकरण की चिन्ता गरणी ने जानी, मुनि मंडल का निर्णय लूगा मानी ।
सोहन गरिएको सबने वार्ता धारी || लेकर० ॥१६६॥
श्रर्थः वर्षोवाद वीसवी सदी मे फिर ऐसा शुभ अवसर प्राप्त हुआ । पजाव के जैन समाज मे पक्खी, सवत्सरी जैसे पर्वो को एव पत्री व परम्परा को लेकर मतभेद चल रहा था । जिसे मिटाने के सम्बन्ध मे चर्चा हुई, लोग बड़े चिन्तित थे । उस समय पंजाव सम्प्रदाय के ग्राचार्य पूज्य सोहनलाल जी महाराज ने श्रावको से कहा कि ग्राप सब चिन्तित क्यो हैं ? स्थानक वासी समाज के मुनियो की एक बृहत्सभा का आयोजन किया जाय, साधु