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वैराग्य के कारण अणुव्रतो अर्थात् छोटे व्रतो का पालन करता है। श्रमण सर्वविरति अर्थात् सम्पूर्ण वैराग्य के कारण महावतो अर्थात् बडे व्रतो का पालन करता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में आचारागादि जैन आगमो के आधार पर श्रावकाचार एवं श्रमणाचार का सुव्यवस्थित प्रतिपादन किया गया है । अन्तिम प्रकरण में श्रमण-सघ का सक्षिप्त परिचय दिया गया है।
इस ग्रन्थ का प्रकाशन पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोष संस्थान से हो रहा है, यह विशेष हर्ष की बात है। भविष्य में संस्थान जैनविद्या से सम्बन्धित अन्य अनेक उपयोगी ग्रन्थो का प्रकाशन करने के लिए कृतसंकल्प है।
ग्रन्थ को सक्षिप्त किन्तु महत्त्वपूर्ण प्रस्तावना के लिए मैं डा० देवराज, अध्यक्ष, भारतीय दर्शन व धर्म विभाग, काशी विश्वविद्यालय का अत्यन्त अनुगृहीत हूँ । सुन्दर मुद्रण के लिए महावीर प्रेस के सुयोग्य सचालक श्री बाबूलाल जैन फागुल्ल का तथा प्रूफ-सशोधन आदि के लिए सस्थान के शोध-सहायक पं० कपिलदेव गिरि का हृदय से आभार मानता हूँ। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान
मोहनलाल मेहता वाराणसी-५
अध्यक्ष २-८-१९६६