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श्रमण-धर्म : १९५
प्रतिमा, महाभद्र-प्रतिमा, सुभद्र-प्रतिमा, सर्वतोमहाभद्र-प्रतिमा, सप्तपिण्डैषणा-प्रतिमा, सप्तपानैषणा-प्रतिमा आदि विविध भिक्षुप्रतिमाओं का वर्णन उपलब्ध होता है। इनमे तप के विविध रूपों का प्रतिपादन किया गया है। तप से कर्मनिर्जरा होती है अतः मुनि के लिए तप आचरणीय है।
समाधिमरण अथवा पंडितमरण :
मरण दो प्रकार का होता है : बालमरण और पडितमरण । अज्ञानियो का मरण बालमरण एवं ज्ञानियों का मरण पडितमरण कहा जाता है। जो विषयों मे आसक्त होते हैं एवं मृत्यु से भयभीत रहते हैं वे अज्ञानी बालमरण से मरते हैं। जो विषयों मे अनासक्त होते हैं यथा मृत्यु से निर्भय रहते है वे ज्ञानी पडितमरण से मरते हैं। चूंकि पडितमरण मे संयमी का चित्त समाधियुक्त होता है अर्थात् सयमी के चित्त मे स्थिरता एवं समभाव की विद्यमानता होती है अतः पंडितमरण को समाधिमरण भी कहते हैं।
जब भिक्षु या भिक्षुणी को यह प्रतीति हो जाय कि मेरा शरीर तप आदि के कारण अत्यन्त कृश हो गया है अथवा रोग आदि कारणों से अत्यन्त दुर्बल हो गया है अथवा अन्य किसी आकस्मिक कारण से मृत्यु समीप आगई है एवं सयम का निर्वाह असभव हो गया है तब वह क्रमशः आहार का सकोच करता हुआ कपाय को कृश करे, शरीर को समाहित करे एव शान्त चित्त से शरीर का परित्याग करे। इसी का नाम समाधिमरण