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श्रमण-धर्म . १९३
प्रतिमा मे अन्न-जल की तीन दत्तियां, चतुर्मासिकी प्रतिमा में चार दत्तिया, पचमासिकी प्रतिमा मे पाच दत्तिया, पटमासिकी प्रतिमा मे छ दत्तिया तथा सप्तमासिकी प्रतिमा मे सात दत्तियां विहित है। __ प्रथम सप्त-अहोरात्रिकी प्रतिमा-प्रतिपन्न भिक्षु निर्जल चतुर्थ • भक्त (उपवास) करते हुए ग्रामादि के बाहर उत्तानासन ( लेटे हुए आकाश की ओर मुख रख कर-चित्त लेट कर ), पाश्र्वासन ( एक पार्श्व के आधार पर लेटकर ) अथवा निषद्यासन (समपादपूर्वक बैठ कर) से कायोत्सर्ग-ध्यान करता है। वहा वह देव, मनुष्य या तिर्यञ्चसम्बन्धी उपसर्ग उत्पन्न होने पर ध्यान से स्खलित नही होता। द्वितीय सप्त-अहोरात्रिकी प्रतिमा मे दण्डासन, लकुटासन अथवा उत्कुटुकासन पर ध्यान किया जाता है। तृतीय सप्त-अहोरात्रिकी प्रतिमा मे ध्यान के लिए गोदोहनिकासन, वीरासन अथवा आम्रकुब्जासन का अवलम्बन लिया जाता है। शेष सव नियम प्रथम सप्त-अहोरात्रिकी प्रतिमा के ही समान हैं।
अहोरात्रिकी प्रतिमा निर्जल षष्ठ भक्त ( दो उपवास ) पूर्वक होती है। इस प्रतिमा मे स्थित मुनि ग्रामादि के वाहर (खडा) रह कर दोनो पैरों को कुछ संकुचित कर तथा दोनों भुजाओ को ( जानुपर्यन्त ) लम्बी कर कायोत्सर्ग करता है।
रात्रिकी प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार निर्जल अष्ट भक्त ( तीन , उपवास) पूर्वक ग्रामादि के बाहर खड़ा रह कर शरीर को ..थोडा-सा आगे की ओर झुकाकर एक पुद्गल (नासिका, नख