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________________ श्रमण-धर्म : १९१ द्वादश भिक्षु-प्रतिमाओ का वर्णन है। उपासक-प्रतिमाएं श्रावक के लिए है जबकि भिक्षु-प्रतिमाएं श्रमण के लिए हैं। द्वादश भिक्षुप्रतिमाओं के नाम इस प्रकार हैं : १. मासिकी, २. द्विमासिकी, ३. त्रिमासिकी, ४. चतुर्मासिकी, ५ पंचमासिकी, ६ पट्मासिकी, ७. सप्तमासिकी, ८. प्रथम सप्त-अहोरात्रिकी, ९. द्वितीय सप्तअहोरात्रिकी, १०. तृतीय सप्त-अहोरात्रिकी, ११. अहोरात्रिको, १२. रात्रिकी। मासिकी प्रतिमाधारी अर्थात् एक महीने तक तपविशेप की आराधना करने वाले मुनि को किसी भी संकट से नही घबराना चाहिए। उसे प्रत्येक प्रकार के परीषह को क्षमापूर्वक सहन करना चाहिए। किसी भी उपसर्ग की उपस्थिति मे दीनता का प्रदर्शन नही करना चाहिए। इस प्रतिमा मे मुनि को एक दत्ति अन्न की एवं एक दत्ति जल की लेना विहित है। यहाँ दत्ति का अर्थ है दीयमान अन्न या जल की एक अखण्डित धारा । यह पदार्थ के एक अंश-हिस्से-टुकडे के रूप मे होती है। मासिकी प्रतिमा-स्थित मुनि को अज्ञात कुल से एक व्यक्ति के लिए बने हुए भोजन मे से ही आहार ग्रहण करना कल्प्य है। गर्भवती के लिए, बालक वाली के लिए, वालक को दूध पिलाने वाली के लिए बना हुआ भोजन लेना अकल्प्य है। जिसके दोनो पैर देहली के भीतर अथवा बाहर हो उससे वह आहार नहीं लेता। जो एक पैर देहली के भीतर एव एक देहली के बाहर रखकर भिक्षा देता है उसी से वह ग्रहण करता है । यह उसका अभिग्रह अर्थात् प्रतिज्ञाविशेष है। मासिकी प्रतिमाधारी श्रमण जहाँ उसे कोई जानता हो वहाँ
SR No.010197
Book TitleJain Achar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1966
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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