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श्रमण-धर्म : १८९
नित्यभोजी भिक्षु को सब प्रकार का निर्दोष पानी लेना कल्प्य है । चतुर्थभक्त करने वाले भिक्षु को निम्नोक्त तीन प्रकार का पानी ग्रहण करना कल्प्य है : उत्स्वेदिम अर्थात् पिसे हुए अनाज का पानी, संस्वेदिम अर्थात् उबले हुए पत्तों का पानी और तंदुलोदक अर्थात् चावल का पानी । षष्ठभक्त करने वाले भिक्षु के लिए निम्नोक्त तीन प्रकार का पानी विहित है : तिलो - दक अर्थात् तिल का पानी, तुपोदक अर्थात् तुष का पानी और यवोदक अर्थात् जौ का पानी । अष्टमभक्त करने वाले भिक्षु के लिए निम्नोक्त तीन प्रकार का पानी विहित है . आयाम अर्थात् पके हुए चावल का पानी, सौवीर अर्थात् काजी और शुद्धविकट अर्थात् गरम पानी । विकृष्टभक्त करने वाले भिक्षु को केवल गरम पानी ग्रहण करना कल्प्य है ।
पाणिपात्र अर्थात् दिगम्बर भिक्षु को तनिक भी पानी वरसता हो तो भोजन के लिए अथवा पानी के लिए नही निकलना चाहिए । पात्रधारी भिक्षु अधिक वर्षा मे आहार- पानी के लिए -बाहर नही जा सकता । अल्प वर्षा होती हो तो एक वस्त्र और ओढकर आहार- पानी के लिए गृहस्थ के घर की ओर जा सकता है । भिक्षा के लिए बाहर गया हुआ मुनि वर्षा आ जाने की स्थिति मे वृक्ष आदि के नीचे ठहर सकता है एवं आवश्यकता होने पर वहाँ आहार- पानी का उपभोग भी कर सकता है । उसे खा-पीकर पात्रादि साफ कर सूर्य रहते हुए अपने उपाश्रय मे चले जाना चाहिये क्योकि वहाँ रह कर रात्रि व्यतीत करना अकल्प्य है ।