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________________ १८६ : जैन आचार खाने-पीने के लिए दिन में एक बार एक पहर का समय दिया गया है। इसी प्रकार सोने के लिए भी रात के समय केवल एक पहर दिया गया है। स्वाध्याय अथवा अध्ययन मे निम्नोक्त पाँच क्रियाओ का समावेश किया जाता है : वाचना; पच्छना, परिवर्तना (पुनरावर्तन ), अनुप्रेक्षा ( चिन्तन ) और धर्मकथा। श्रमण की इस संक्षिप्त दिनचर्या का विवेचन करते हुए उत्तराध्ययनकार ने बतलाया है कि दिवस के प्रथम प्रहर के प्रारम्भ के चतुर्थ भाग मे वस्त्र-पात्रादिका प्रतिलेखन ( निरीक्षण) करने के बाद गुरु को नमस्कार कर सर्व दु खमुक्ति के लिए स्वाध्याय करना चाहिए। इसी प्रकार दिवस के अन्तिम प्रहर के अन्त के चतुर्थ भाग मे स्वाध्याय से निवृत्त होकर गुरु को वंदन करने के बाद वस्त्र-पात्रादि का प्रतिलेखन करना चाहिए । प्रतिलेखन करते समय परस्पर वार्तालाप नही करना चाहिए और न किसी अन्य से ही किसी प्रकार की बातचीत करनी चाहिए अपितु अपने कार्य मे पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए। तृतीय प्रहर में क्षुधा-वेदना की शान्ति आदि के लिए आहार-पानी की गवेषणा करनी चाहिए। आहार-पानी लेने जाते समय भिक्षु को पात्र आदि का अच्छी तरह प्रमार्जन कर लेना चाहिए। भिक्षा के लिए अधिक-से-अधिक आधा योजन (दो कोस) तक जाना चाहिए। चतुर्थ प्रहर के अंत में स्वाध्याय से निवृत्त होने पर एव वस्त्रपात्रादि की प्रतिलेखना कर लेने पर मल-मूत्र का त्याग करने की भूमि का अवलोकन करने के बाद कायोत्सर्ग (प्रतिक्रमण अथवा आवश्यक ) करना चाहिए । कायोत्सर्ग मे दिवससम्बन्धी अति
SR No.010197
Book TitleJain Achar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1966
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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