________________
श्रमण-धर्म : १७७
न हो वहाँ न रहे । जब चातुर्मास पूर्ण हो जाय तथा मार्ग जीवजन्तओं से साफ हो जाय तव वह सयमपूर्वक विहार प्रारम्भ करदे । चलते हुए किसी प्राणी की हिंसा न हो, इसका पूरा ध्यान रखे। जीव-जन्तुविहीन मार्ग लम्बा हो तो भी उसी का अवलम्वन ले। वह ऐसा मार्ग ग्रहण न करे जिससे जाने पर सयमरक्षा मे किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित होने की आशंका हो अथवा आगे के नामादि का पता न लगे। नौकाविहार:
आवश्यकता होने पर नाव का उपयोग करने की अनुमति प्रदान करते हुए कहा गया है कि मुनि को यदि यह मालूम हो कि नाव उसी के निमित्त चलाई जारही है अथवा उसके लिए उसमे किसी प्रकार का सस्कार किया जारहा है तो वह उसका उपयोग न करे। यदि गृहस्थ अपने लिए नाव चला रहा हो तो मुनि उसकी अनुमति लेकर यतनापूर्वक एक ओर बैठकर उस नाव द्वारा पानी पार कर सकता है। नाव मे यदि कोई कुछ कार्य करने को कहे तो वह न करे । नाव वाले उससे किसी प्रकार का सहयोग न मिलने पर यदि क्रुद्ध होकर उसे पानी मे फेंक देने को तैयार हो जाय तो वह अपने आप ही उतर जाय एव समभावपूर्वक तैर कर बाहर निकल जाय । यदि वे उसे पानी मे डाल ही दें तो भी निराकुलता-पूर्वक तैरते हुए पानी पार कर जाय । तैरते समय किसी प्रकार का आनन्द न लेते हुए सहज भाव से तैरे। बाहर निकलने के बाद शरीर व वस्त्रो को अपने आप ही सूखने दे। तदनन्तर विहार करे।
१२