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श्रावकाचार : १०९
कहा है। उपासकदशाग मे निम्नलिखित १५ कर्मादान श्रावक के लिए वर्जित किये गये हैं : १. अंगारकर्म, २. वनकर्मः ३. शकटकर्म, ४. भाटककर्म, ५ स्फोटककर्म, ६. दंतवाणिज्य, ७. लाक्षावाणिज्य, ८ रसवाणिज्य, ९. केशवाणिज्य, १०. विषवाणिज्य, ११. यन्त्रपीडनकर्म, १२ निलांछनकर्म, १३. दावाग्निदानकर्म, १४. सरोह्रदतडागशोषणताकर्म, १५ असतोजनपोषणताकर्म। अगारकर्म अर्थात् अग्नि-सम्बन्धी व्यापार जैसेकोयले वनाना, इंटें पकाना आदि । वनकर्म अर्थात् वनस्पतिसम्बन्धी व्यापार जैसे-वृक्ष काटना, घास काटना आदि । शकटकर्म अर्थात् वाहनसम्बन्धी व्यापार जैसे-गाडी, मोटर, तांगा, रिक्शा वगैरह बनाना आदि । भाटककर्म अर्थात् वाहन किराये पर देना आदि । स्फोटककर्म अर्थात् भूमि फोडने का व्यापार जैसे-खाने खुदवाना, नहरे बनवाना, मकान बनाने का व्यवसाय करना आदि । दतवाणिज्य अर्थात् हाथीदांत आदि का । व्यापार । लाक्षावाणिज्य अर्थात् लाख आदि का व्यापार। रसवाणिज्य अर्थात् मदिरा आदि का व्यापार । केशवाणिज्य अर्थात् बालो व वालवाले प्राणियो का व्यापार । विषवाणिज्य अर्थात् जहरीली वस्तुओ तथा हिंसक अस्त्र-शस्त्रो का व्यापार । यन्त्रपीडनकर्म अर्थात् मशीन चलाने आदि का धन्धा । निर्ला नकर्म अर्थात् प्राणियो के अवयवो को छेदने, काटने आदि का व्यवसाय । दावाग्निदानकर्म अर्थात् जगल, खेत आदि मे आग लगाने का कार्य । सरोह्रदतडागशोषणताकर्म अर्थात् सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य । असतीजनपोषणताकर्म अर्थात् कुलटा