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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
नाटकों की पृष्ठभूमि हरिश्चन्द्र के नाटकों की प्रेरणा है नवीन जागरण की ज्योति । उन्होंने देखा, देश में नया जागरण हो रहा है। नई शिक्षा और पश्चिमी विचारों का प्रकाश फैलता जा रहा है, हम बहुत पिछड़े हुए हैं । हिन्दी की वाणी नये स्वरों के प्रति मूक है । हिन्दी-साहित्य नई चेतना से शून्य है । उनका हृदय तिलमिला उठा । देश की हीनावस्था देखकर उनकी देश-भक्ति छटपटा उठी। यही देश-भक्ति उनकी प्रतिभा के लिए प्रेरक निर्देश बनी-यही देश-भक्ति उनके लिए निश्चित पथ बनी और यही देश भक्ति उनके साहित्य की प्राण बनी। देश-भक्ति की भावना से ही सबल प्रेरणा पाकर भारतेन्दु ने अपने नाटक, काव्य, इतिहास आदि की रचना की । इस देश-भक्ति के विभिन्न रूप उनकी रचनाओं में मिलते हैं। कहीं देश के प्राचीन गौरव के रूप में तो कहीं हिन्दू-संस्कृति के प्रति ममता के रूप में, कहीं समाज-सुधार के रूप में तो कहीं पाखण्ड-खण्डन के रूप में; और कहीं भगवत्-भक्ति के रूप में तो कहीं प्रम के रूप में।
देश-प्रेम से आकुल, नव-निर्माण के उत्साह से प्रेरित, जन्मभूमि की सेवा से गद्गद् और हिन्दुओं की हीनावस्था से आहत भारतेन्दु ने इतिहास, पुराण, और वर्तमान जीवन के विविध क्षेत्रों से अपने नाटकों के लिए कथानक और पात्र चुने । कथानक और पात्रों की दृष्टि से उनके नाटक तीन प्रकार के हैं--पौराणिक, ऐतिहासिक, काल्पनिक या वर्तमान जीवन-सम्बन्धी । रस की दृष्टि से वीर, शृङ्गार, हास्य, करुणा उनके नाटकों में पाये जाते हैं। फल की दृष्टि से, सुखान्त तथा दुःखान्त दोनों प्रकार के नाटक उन्होंने लिखे हैं।
'सत्य हरिश्चन्द्र पौराणिक, करुण तथा वीर रसपूर्ण सुखान्त नाटक है और 'नीलदेवी' ऐतिहासिक वीर रसपूर्ण सुखान्त नाटक है । यद्यपि बहुतों ने इसे दुःखान्त लिखा है । 'वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति', 'अंधेर नगरी', विषस्य विषमौषधम् व्यंग्य-नाटिकाए हैं। इनमें हास्य का अच्छा योग है। 'प्रेम योगिनी' सामाजिक व्यंग और 'चन्द्रावली' प्रेम-प्रधान कल्पना-रूपक हैं।
भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने जीवन के हर क्षेत्र से अपने नाटकों की सामग्री एकत्र की और उनमें जीवन की विविधता का भी चित्रण किया। भारतेन्दु की प्रतिभा संकुचित क्षेत्र में बँधी नहीं थी-उसका विस्तार मानव की जीवन-धरती पर बहुत दूर-दूर तक था। उनकी प्रतिभा, कला और कल्पना की सीमाए बहुत उदार थीं । जीवन-सामग्री के चुनाव में भारतेन्दु जी ने अपनी कला को पूर्ण स्वाधीन रूप से खिलने देने का बड़ा ध्यान रखा है।