________________
वृन्दावनलाल वर्मा
२३६को रक्त प्रदान करता है । गोकुल-पुनीता का विवाह हो जाता है और मंदाकिनी फूलचन्द से विवाह करने से इन्कार कर देती है । 'खिलौने की खोज' में डॉक्टर सलिल और सरूपा के पूर्व प्रेम की कथा है। दोनों का विवाह नहीं. हुआ और इस कारण सलिल को क्षय और सरूपा को लगातार सिर दर्द रहने लगा। ___ प्रथम दो नाटकों-'राखी की लाज' और बाँस की फाँस' में समाज को कोई भारी उलझनभरी और मनोवैज्ञानिक समस्या नहीं है। दोनों घटना-प्रधान नाटक हैं । सहसा किसी के हाथ में राखी बाँध देना और उसकी लाज रखना अनेक पुस्तकों की कथा-कहानियों में दुहराया गया है। जीवन के ऊपरी स्तर की यह एक आकस्मिकता-मात्र है-इसमें कोई गहनता,छटपटाहट या उलझन नहीं । 'बाँस को फॉस' में भी जीवन के बाह्य चित्र का ही अंकन है। सहसा एक रेल-दुर्घटना होती है और पुनीता घायल हो जाती है । गोकुल अपना खून और मांस उसे देता है । ऐसी घटनाए समाज में होती हैं और ऐसे भी वीर और पर-दुःख-कातर हैं,जो अपने रक्तले अन्य के प्राण बचाते हैं। पर यह कोई दैनिक जीवन को कचोटने वाली सामाजिक समस्या नहीं,है और न रात-दिन ऐसी घटनाएं होती ही हैं कि यह एक सामाजिक समस्या का रूप धारण कर लें । किसी भिखारिन से विवाह यदि किसी रोमांस के नशे में या दया-द्रवित होकर किया जाय तो भी वह सामाजिक वैषम्य का हल नहीं है। इसके अतिरिक्त इस 'रक्त-दान' की साहित्य में इतनी भीड़-भाड़ है कि इसमें उकता देने वाली पुनरावृत्ति हैं। ___'खिलौने की खोज' में निश्चय ही जीवन की गहन समस्या ली गई है। सरूपा और सलिल का बचपन से प्रेम है, उनका विवाह न हो सका । सलिल के पास सरूपा का एक खिलौना है, उसी की मूर्ति । सलिल उसके यहाँ से केवल उसे चुरा ले जाता है । सरूपा जब उसे देखती है तो उसके जीवन की पुरानी स्मृतियाँ जाग उठती हैं, जिन्हें वह बलपूर्वक दबाए हुए थी। सलिल सरूपा का इलाज करने के लिए बुलाया जाता है और वह उससे पुरानी सभी बातें पूछता है । पहले तो वह छिपाती है, पर अन्त में सब-कुछ कह देती है। इस नाटक में मनोवैज्ञानिक तत्त्व का उद्घाटन किया गया है कि स्मृतियों को बलपूर्वक दबाकर रखना हानिकर है और इससे अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं । ऐसा होता भी है। भीतर-ही-भीतर घुटने से क्षय आदि रोग होते देखे गए हैं।
वर्मा जी के नाटकों में समाज के बाह्य पहलू-ऊपरी समस्याओं-जो