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हिन्दी के नाटककार की रानी' १८५७ ई० के गदर के समय का और 'काश्मीर का काँटा' का समय अक्तूबर १९४७ हैं।
'पूर्व की ओर' की भूमिका में वर्मा जी ने उसकी ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला हैं। और उन्होंने जिन अनेक ऐतिहासिक घटनाओं को समय और स्थान की डोर से बाँध दिया है, उनका भी निर्देश कर दिया है। अश्वतुङ्ग के निर्वासन की घटना इतनी प्राचीन है कि इस पर लिखा गया नाटक काल्पनिक ही अधिक होगा। इसलिए धारा, तूम्बी, गजमद आदि-जैसे प्रमुख पात्र भी काल्पनिक हैं। 'फूलों की बोली' में तो तनिक भी ऐतिहासिकता नहीं, केवल इस । आधार ऐतिहासिक घटना-मात्र है। सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक हैं। यह नाटक तो ऐतिहासिक न होकर सामाजिक ही समझना चाहिए—पूर्णतः वर्तमान युग का । 'बीरबल' में प्रमुख चरित्र ऐतिहासिक हैं । पर उसमें अधिकतर घटनाए काल्पनिक हैं। हाँ, इस नाटक के द्वारा हमें जसवन्त के जीवन की नई झाँकी अवश्य मिल जाती है। यह भी वर्मा जी ने अपनी भूमिका में दे दिया है कि इस चित्रकार के जीवन का अन्त बहुत ही करुण हुआ। इसने आत्म-हत्या करके अपनी जान गंवाई। बीरबल के चरित्र में भी नया रंग इस नाटक के द्वारा भरा गया है। 'झाँसी की रानी' में लक्ष्मीबाई और गदर के संचालकों का ऐतिहासिक चरित्र है । एक दो घटनाए काल्पनिक भी हैं, पर वे इतिहास का न तो अपमान ही करती हैं, और न उसका विरोध ही । 'काश्मीर का काँटा' में ब्रिगेडियर राजेन्द्रसिंह के बलिदान की कथा है। यह तो कल ही की बात है। इसकी ऐतिहासिकता में क्या सन्देह हो सकता है। पर नाटक में न तो उसकी वीरता आ पाई और न कोई घटना । बातचीत में ही नाटक की सार्थकता समझ ली गई ! .
समाज और समस्या _ 'राखी की लाज', 'बाँसकी फाँस', 'खिलौने की खोज' सम्पूर्ण और 'सगुन', 'पीले हाथ', 'लो भाई, पंच लो' एकांकी नाटक सामाजिक हैं। राखी की लाज' में चम्पा सहसा (मेघराज डाकुओं का साथी सपेरा) को राखी बाँध देती है और उसके बाप के यहाँ डाका पड़ते समय वह चम्पा की रक्षा करता है। वही चम्पा के प्रेमी--अभिलाषित वर-सोमेश्वर से उसका विवाह करा देता है, यद्यपि पिता उसका विवाह किसी अन्य लड़के से करना चाहता था। 'बॉस की फॉस' में गोकुल एक भिखारिन की लड़की पुनीता के घायल होने पर उसे अपना रक्त और ताआ मांस और फूलचन्द मंदाकिनी