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हिन्दी के ताटककार दूसरे की रचना-बहुत कठिन है। इसका प्रथम अंक ही नाटकीय दृष्टि से व्यर्थ-सा जान पड़ता है। आकार में भी यह बहुत बड़ा है इसके अभिनय के लिए पाँच घण्टे का समय चाहिए ।
इसके कई-एक दृश्य किसी पात्र का परिचय या कोई सूचना-मात्र देने के लिए ही रच डाले गए हैं जैसे दूसरे अङ्क का दूसका दृश्य। अभिनय की दृष्टि से यह नाटक अनेक त्रुटियों से पूर्ण है; जैसा कि लेखक ने स्वयं 'स्वर्ग की झलक' में स्वीकार किया है "मैने उसे (जय पराजय) लिखते समय रंगमंच का पूरा ध्यान रखा था ... पर मैं तब भी जानता था और अब भी जानता हूँ कि वह शायद ही कभी पूरे-का-पूरा खेला जाय । खेलने के लिए उसे काफी संक्षिप्त करना पड़ेगा।"
__ 'स्वर्ग की झलक' से अश्क के नाटकों में अभिनेयता तेजी से विकसित होती गई है । 'स्वर्ग की झलक' में चार अङ्क हैं। पहले तीन अङ्क में तीन दृश्य ही हैं और चौथे अंक में चार दृश्य हैं। पहले तीन अंकों में कोई कठिनता हो ही नहीं सकती । चौथे अङ्क का पहला दृश्य कंसर्ट का है। इसके बाद दूसरा दृश्य रघु के घर का, फिर तीसरा कंसर्ट का मेकप आदि उतारने का । तीसरे और पहले के बीच दूसरा दृश्य बहत ही उपयोगी और नाटकीय दृष्टि से आवश्यक है । 'कैद' 'उड़ान' और 'छठा बेटा' के सभी दृश्य एक ही स्थान पर हो जाते हैं। पूरे नाटक एक ही स्थल पर प्रारम्भ होकर समाप्त होते हैं । दृश्यों के सामान में अदल-बदल नहीं करनी पड़ती । केवल पात्र एक दो मिनट के लिए आँखों से ओझल होकर कुछ देर सुस्ता-भर लेते हैं। 'स्वर्ग की झलक', 'कैद', 'उड़ान' और 'छा बेटा' सभी में मंचीय निर्देश बहुत विस्तृत और उपयोगी है। उनसे भी लेखक की अभिनय-कला की समझदारी प्रकट होती है। ___ अभिनय के लिए कार्य-व्यापार, प्रभावशाली प्रारम्भ और अन्त, अाकस्मिकता आदि गुण भी नाटक में होने श्रावश्यक हैं। कार्य-व्यापार की दृष्टि से 'जय पराजय' के तीसरे अङ्क का दूसरा दृश्य, चौथे का सातवाँ, पानः का सातवाँ उपस्थित किये जा सकते हैं। 'कैद' और उड़ान' में भी कार्यव्यापार की पर्याप्त मात्रा है । इनमें ऐतिहासिक नाटकों के समान उछल-कूद, ल पक-झपक खोजने की आवश्यकता नहीं। प्रभावशाली प्रारम्न और अन्त की दृष्टि से 'कैद', उड़ान', 'स्वर्ग की झलक' और छठा बेटा' सभी नाटक श्रेष्ठ हैं। 'कैद' के अन्त में अप्पी का सिसकना, 'छठा बेटा' में वसन्तलाल का स्वप्न में 'आह मेरा छठा बेटा' कहते हुए करवट बदलना, 'उड़ान' में माया