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हिन्दी के नाटककार को अपनी संगिनी बनाने को पागल था, उससे विरत हो जाता है और वही कम पढ़ी-लिखी लड़की रक्षा उसकी स्वीकृत संगिनी बनती है। ___ 'कैद' और 'उड़ान' में भी विवाह-समस्या को ही लिया गया है। अप्पी दिलीप को चाहती थी, परिस्थितियाँ सहायक न हुई और उसका विवाह प्राणनाथ से हो गया। स्वर्ग की वातास के झोंकों से झूलती वह लता मुलस गई । धन, सामाजिक स्थिति और सरकारी नौकरी ही सब-कुछ नहीं-यह शारीरिक और मानसिक भूख नहीं बुझा सकती । अप्पी अपने को काले पानी म समझती है ! किशन-पार्वती के वार्तालाप से भी यह स्पष्ट कर दिया गया है। 'उड़ान' में जीवन की तीन समस्याएं ली गई हैं ! नारी को पूज्य समझकर आरती उतारी जाय, वासना को सामग्री समझा जाय, या सम्पत्ति के रूप में उसे ग्रहण किया जाय । लेखक का संकेत है कि वह इन तीनों में से कुछ नहीं है। एक स्वस्थ सजग संगिनी है।
माया एक स्थान पर कहती है, "एक आकाश में बमता है, दूसरा गहरे अँधियारे खड्ड का वासी है। मैं दोनों ( शंकर और रमेश ) से डरती हूँ, ऊँचाई या गहर। ई मेरा आदर्श नहीं । गहरे गड्ढों या ऊँचे शिखरों से मैं ऊब गई हूँ। मै समतल धरती चाहती हूँ।" अन्तिम दृश्य में मदन, शंकर और रमेश की अोर बारी-बारी से देखते हुए माया कहती है, "तुम एक दासी, खिलौना या देवी चाहते हो, संगिनी की .तुममें से किसी को आवश्यकता
नहीं ।"
इससे नारी की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। ..
'उड़ान' में और भी कई सामाजिक स्थितियों के सुन्दर चित्र खींचे गये हैं । आपत्तिकाल में लाज और शील के पर्त कैसे उड़ जाते हैं, यह रंगून की बमबारी का उल्लेख करते हुए माया कहती है, “बमबाजी ने जहाँ उन मकानों 'के परखचे उड़ा दिये, वहाँ उनके वासियों की लज्जा को भी तार-तार कर दिया। जिसकी शर्म उन्हें झरोखे से झाँकने तक की आज्ञा न देती थी, उन्हें मैने नंगे मुह, नंगे मुँह क्या नंगें शरीर, सड़कों पर मांगते हुए देखा है। मैं शर्म और बेशर्मी से ऊपर उठ गई हूँ।"
'छठा बेटा' में कोई उलझनभरी समस्या नहीं उठाई गई। केवल धन की स्थिति पर हँसाने वाला व्यंग्य किया गया है । धन से मनुष्य की स्थिति क्या हो जाती है, उसकी सेवा और चाटुकारिता के लिए हर-एक तैयार होता है. यही इसमें दिखाया गया है।