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उपेन्द्रनाथ 'अश्क'
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'स्वर्ग की झलक', 'कैद' और 'उड़ान' हिन्दी के श्रेष्ठ समस्या- नाटकों में गिने जाने चाहिए ।
हास्य और व्यंग्य
'स्वर्ग की झलक' और 'छठा बेटा' अश्क जी की दो कृतियाँ हास्य-व्यंग्यप्रधान हैं । 'स्वर्ग की झलक' में आधुनिक नारी का बहुत ही व्यंग्यात्मक चित्र है । 'छठा बेटा' में हास्य अधिक है व्यंग्य कम । 'स्वर्ग की झलक' का दूसरा रा और तीसरा अंक विशेष रूप से व्यंग्य के अच्छे उदाहरण हैं ।
" श्रीमती अशोक – मैने कह दिया मुझमें स्वयं हिम्मत नहीं ।
मि० अशोक ( मनुहार के स्वर में ) देखो सीता, खीर तो मैने पका ही डाली है, सब्जी मैं ले आया हूँ । तुम जरा उसे चढ़ा देतीं और चार रोटियाँ ( चुटकी बजाता है ) ...
श्रीमती अशोक - मैंने कभी बनाई भी हों । "
इसी बातचीत के दौरान में रघु या जाता है, जब अशोक गला फाड़-फाड़कर श्रीमती अशोक को उठाने लगा था ।
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" रघु – क्या बात है इतने चीख रहे हो ? ( श्रीमती अशोक से ) नमस्ते जी...
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मि • अशोक ( बेज़ारी से ) - चीख रहा हूँ, क्या करूँ बीस बार कहा कि भाई तुम आराम करो! समय पर एक घड़ी का आराम बाद को एक वर्ष की मुसीबत से बचाता है, पर यह मानती ही नहीं ( थके स्वर में ) स्वास्थ्य इनका खराब है, रात ये सोई नहीं; पर ज्यों ही सुबह मैंने बताया कि तुम्हारा खाना है, तो झट रसोई में जा बैठीं । मैं सब्जी लेने गया था- मेरे आतेप्राते इन्होंने खीर बना डाली ( हँसते हैं ) खीर बनाने में तो सीताजी बस निपुण हैं। मुझे लग गई देर, वापस आया तो बड़ी मुश्किल से रसोईघर से उठाया कि भाई आराम करो, फिर मुझे ही डॉक्टरों के पीछे मारा-मारा फिरना पड़ेगा ।"
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यह स्थिति दर्शकों को हँसाते-हँसाते लोट-पोट कर देगी । तीसरे अङ्क में हास्य कम है, वह व्यंग्य - प्रधान हो गया है । श्रीमती राजेन्द्र आधुनिक नारी का दूसरा नमूना है । उसे अपने बीमार बच्चे की चिन्ता नहीं, कंसर्ट में जाकर नृत्य करने का उल्लास है । यह चरित्र ही व्यंग्य का सुन्दर नमूना है, तब भी इसमें स्थिति और संवाद का भी तीखा व्यंग्य है।