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उपेन्द्रनाथ 'अश्क'
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कर रही थी। नाटक लिखने का प्रारम्भ केवल प्रयोग के रूप में ही अश्क ने किया । यदि कोई प्रेरणा का स्वरूप रहा भी हो, तो स्पष्ट नहीं । उनके इस नाटक को पढ़ने से ऐसा भी मालूम नहीं होता कि इनके साहित्यिक जीवन में कोई महत्त्वाकांक्षी प्राकुलता काम कर रही है। 'जय-पराजय' के पश्चात् 'अश्क' के नाटककार में एक व्यापक प्रेरणा बड़े
आकुल रूप में गतिशील होती हुई दिखाई देती है। 'स्वर्ग की झलक' में यह प्रेरणा अंगड़ाई-सी ले रही है, 'कैद और उड़ान' में सजग और साकार हो उठी है । इनको पढ़ने से मालूम होता है कि सामाजिक और व्यक्ति-सम्बन्धी उलझनभरी धुंधली तहों में दबी समस्याओं को चित्रित करने में अश्क क्रियाशील हो गया है । वह पश्चिमी यथार्थवादी प्रसिद्ध नाटककारों-मेटरलिंक, स्टूिण्डबर्ग, श्रो० नील आदि से भी बहुत प्रभावित हुआ । जैसा कि 'कैद
और उड़ान' को व्याख्या' में श्री धर्मवीर भारती ने लिखा है, 'अश्क ने...... एक दूसरी ही दिशा अपनाई अर्थात् वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के चक्र में उलझे हुए मानव के अन्तर्मन में बसने वाली पीड़ा, घायल संस्कार और प्यासी खूखार प्रवृत्तियाँ । जैसा स्वयं उन ( अश्क ) का कहना है कि वे नाटकों में स्ट्रिण्ड बर्ग-जैसी गहराई और तीखापन लाना पसन्द करते हैं...।"
समाज की समस्या 'अश्क' के पहले नाटक को छोड़कर सभी नाटक सामाजिक हैं। इन्होंने 'स्वर्ग की मलक' में कहा भी है, “मेरे अपने विचार में आज हमें सामाजिक नाटकों की अधिक आवश्यकता है।"
_ 'स्वर्ग की झलक' में आधुनिक शिक्षा और विवाह-समस्या को लिया गया है। प्राधुनिक शिक्षा ने नारी को कहाँ-से-कहाँ ला पटका, यह इसमें पूर्ण सफलता से चित्रित हुआ है। वर्तमान शिक्षा ने नारी को प्रालसी, निकम्मा, फैशन-परस्त, अधिकार की प्यासी और बाहरी टीप-टाप के लिए पागल बना दिया है । घर उजड़ रहे हैं-नृत्य-भवन आबाद हो रहे हैं। श्रीमती अशोक दो रोटियाँ पकाते हुए कराहती हैं-नाक-भौं सिकोड़ती हैं; पर कंसर्ट में नाना आवश्यक है । श्रीमती राजेन्द्र अपने ज्वर-पीड़ित बालक को नहीं सँभालती,उसे पति की गोद में छोड़कर नृत्य के लिए चली जाती है। एक वह माँ है,जो अपने बच्चे को तनिक-सा ज्वर श्राने पर चिड़िया की तरह उसे कलेजे से लगाये रात-रात भर जागकर बिता देती है और एक यह अाधुनिक माँ है। उमा भी नारी की स्वतन्त्र सत्ता और अधिकार की शानदार उपासिका है । रघु, जो उमा