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हिन्दी के नाटककार
और 'शशिगुप्त' का प्रथम दृश्य 'प्रसाद' के 'चन्द्रगुप्त' के प्रथम दृश्य की बराबरी नहीं कर सका । श्रारम्भ वैसा ही है ।
नाटक का अन्त भी प्रभावशाली होना चाहिए । 'कर्ण' का अधिक शानदार न हो सका । इससे अधिक प्रभावशाली तो 'दानवीर कर्ण' का अन्त है - कृष्ण और अर्जुन को मरते-मरते भी दान करते हुए । 'कर्ण' का अन्त कर्ण के महत्व को अवश्य कम कर देता है । 'कुलीनता' का अन्त भी दु:खद है - प्रभावशाली अवश्य है । 'दुःख क्यों' का अंत भी अच्छा है । 'बड़ा पापी कौन' और 'महत्त्व किसे' का न श्रारम्भ नाटकीय है और न अन्त । इनमें नाटकीय कला विकसित रूप में नजर नहीं श्राती । कार्य-व्यापार नाटक का प्राण है
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'कुलीनता' में कार्य-व्यापार पर्याप्त ही स्फूर्ति, गति और कार्य-व्यापार से
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मात्रा में पाया जाता है । प्रथम दृश्य पूर्ण है । दूसरे श्रंक का आरम्भ भी स्फूर्तिमय गतिशीलता से होता है । तीव्रता से सुर भी पाठक प्रवेश करता है और कड़ककर कहता है, "बन्द करो यह नृत्य और हट जाम्रो नर्तकियो ! " सामाजिक स्तम्भित तरह जायंगे । इस दृश्य में उछल-कूद नहीं है, और न इसे कार्य - व्यापार ही कहा जाता है । अभिनय की गतिशीलता इसमें श्रवश्य है । इसी का तीसरा दृश्य भी रोमांचकारी है । श्मशान में यदुराय का घूमना । उसके स्वगत में भी श्रत्यन्त तीव्रता और गतिशीलता है । तीसरे अङ्क का प्रारम्भ भी उष्णता में होता है । इसी प्र का तीसरा दृश्य भी कार्य - व्यापार पूर्ण है । नाटक का अन्तिम दृश्य तो बहुत ही स्फूर्तिमय है । 'कुलीनता' कार्य- व्यापार की दृष्टि से सफल नाटक है । 'शशिगुप्त' में कार्य - व्यापार का तत्त्व अधिक श्राना चाहिए था, पर इसमें युद्ध की कुछ घटनाओं को छोड़कर घटनाओं की कमी है।
'कर्ण' का उपक्रम वाला दृश्य तो कार्य - व्यापार की दृष्टि से पूर्व है । पहले अङ्क का पहला दृश्य भी गतिशील है । तीसरा दृश्य द्यतक्रीड़ा का -यह तो जानदार और चलता हुआ होना ही चाहिए । 'कर्ण' में भी घटनाओं की शृङ्खला नहीं है अधिक घटनाओं-सम्बन्धी कार्य-व्यापार भी कम है, पर भाव अनुभाव सम्बन्धी कार्य - व्यापार की इसमें भी कमी नहीं । गोविन्ददास जी के सामाजिक नाटक 'दुःख क्यों', 'महत्व किसे' और 'बड़ा पापी कौन' कार्य-व्यापार की दृष्टि से बहुत शिथिल हैं । 'दुःख क्यों' के तीसरे और चौथे के अन्तिम भाग में कार्य - व्यापार या गतिशीलता है । शेष पूरे नाटक में बैठे या खड़े होकर वार्तालाप मात्र किसी घटना का नाम नहीं ।
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